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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ ज्योतिषचमत्कार ममीक्षायाः ॥ श्राज्ञा लेकर माधारण शिवा ( चौघड़िया) मुहूर्त करके जाना चाहिये इस को प्रापद्धर्म कहते हैं। कमुहूर्त में यात्रा करने वाले को शुभ दशा होने के कारमा केवल क्लेश और दुष्टदशा दुर्मुहूर्त होने से मृत्यु हो जाती है ॥ प्रश्न-शनि क्षेत्रे यदाभानुः भानुक्षेत्रेयदाशनिः । सद्यएवभवेन्मृत्युः शंकरो यदि रक्षति ॥ इम योग में नाम लेने वाले बालक जन्मते ही मरजाने चाहिये । पर २० । २५ वष के मैंने कितने ही इस योग बाल दखे जो कि माज तक जाते हैं सो क्यों नहीं मर गये ? ॥ उत्तर-त्रिषष्ठकादशेराहु-स्त्रिषष्ठकादशे शनिः। त्रिषष्ठकादशेभौमः सर्वानिष्टोन्निवारयेत् ॥ इस प्रकार के अनेक अरिष्ट भंग करने वाले योग जिन के पड़ने से अरिष्टी योग पट जाते हैं सो शुभ योग कोई पड़जाने के कारण उन की मृत्यु नहीं हुई होगी नहीं तो अवश्य मरजाते॥ प्रश्न-मूल नक्षत्र में जन्म होने से पिता का नाश होना लिखा है "आद्ये पिता नाशमुपैति मूलपादे, इत्यादि, अनेक मूल नक्षत्र वालों के पिता माता जीवित देखे हैं मूल नक्षत्र वालों को धनाढय भी देखा सो तन को मूल नक्षत्र का फल "क्यों नहीं लगा ॥ उत्तर-मूला नक्षत्र का फल ठीक २ लगा होगा, क्योंकि "स्वगै शुचिः प्रोष्ठपदेषु माघे,, माघे इत्यादि के अनुसार स्वर्ग अथवा पाताल लोक के मूल होंगे और भी मूल के कई वि. चार हैं वे अच्छे होंगे नहीं तो अवश्य पिता प्रादि का नाश हो जाता, मूग वृक्ष के विचार से " फन्ले राज्यं शिखावृद्धिः " इत्यादि उत्तम योग पड़ जाने से राजतुल्य अथवा धनाढ्य होना भी सम्भव है ये सूक्ष्म विचार बड़े कठिन हैं। इन वि. चारों को छापेकी एक भाषा टीका रख लेने वाले लोग नहीं लागते । वे तो यही हैं। रि मू । नक्षत्र पड़ा तो पिता का For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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