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( १२ ) मिस्सओ भणीओ तइओय निर्विसेसो। एस विही होइ अणुओंगो॥
इस पाठ में साफ लिखा है कि प्रथम सूत्रार्थ का कथन करना, फिर नियुक्ति के साथ द्वितीय वार अर्थ करना, और तीसरी वार निर्विशेष अर्थात पूरा २ अर्थ करना, अब ख्याल करना चाहिये कि इस पाठ से नियुक्ति मानना साफ प्रतीत होता है।
हँढिया-भरत महाराज ने धर्म जानकर नहीं प्रत्युत बाप के मोह से मन्दिर और मूर्तियें बनवाई ॥
. मन्त्री-आपका यह कथन मिथ्या है क्योंकि भरत महाराजजी ने श्रीऋषभदेवजी की ही नहीं प्रत्युत. और तेईस तीर्थङ्कर महाराजजी की मूर्तियां बनवाई थी, आप लोगों ने तो नियुक्ति-भाष्य-टीका-और चूर्णी-यह जो पांच अङ्ग हैं उनमें से केवल एक सूत्र को ही माना शेष छोड़ दिये । इस कारण से ही आप जैनश्वेताम्बरधर्म के अनुयायी नहीं हैं। यथा पैदिकधर्म में स्वामी दयानन्दजी ने वेद के मूल पाठ को माना टीका और भाष्य को नहीं माना, और नया मत प्रकाशित किया
और मुसलमान मत में जिन्होंने कुरान को माना,और हदीस को न माना वह राफ जी मत कहलाया, वैसे हो आप लोगों ने भी ठीक बात को न मानकर उलटी बात को माना और
ढूंढिए कहलाए।
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