________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
AA
षष्ठोऽध्यायः ॥ सालियाना घरावर देते हैं, भेंट ( नजर ) हाथ जोड़कर रईस लोग ज्योतिर्विदों को देते हैं। नौकरी इत्यादि पेशों से प्रा. ज दिन भी गणकयरों की अधिक प्रतिष्ठा ( इज्जत ) है ॥ __धर्म सभा और पांग संशोधिनी सभा महामण्डल तथा परिषद् इत्यादि सभाशों के प्रचार होने से बड़ी २ उपाधि और मेहल (सग्में) हम को मिलने लगे हैं। पहिले ये बातें कहां थीं? मेमोके प्रचार से ग्रन्थ रचना, टीका करना, पंचाग अपामा, इत्यादि द्वारा पहिले से दूना नाम तथा धन घर बैठे पैदा करने लगे हैं। सम्बाद पत्रों की कृपा से दूर २ नाम फैलने ल. मा है। सरकार गवर्नमेण्ट भी मध्छे ज्योतिषियों की इज्जत करती है। अनेक पण्डितों को हिलोमा दिये हैं। केवल हिन्दूलोग ही ज्योतिष को नहीं मानते किन्तु अन्यधर्मी ईमाई जैमी नमाजी समाजी तर मी मानते हैं। थियोसोफि. कल सोसाइटी में भी भादर किया है और वरावर इस प्रत्यक्ष शास्त्र का प्रादर बहता रहेगा।
पाठक ! कुछ अदूरदर्शी लोग इस शास्त्र के विरोधी हैं सो ऐसे लोगों की सामान्य कोटि में गहमा है। अच्छे कुलीन शिक्षित लोगों में केवल एक हमारे मित्र पं० जनार्दन जोशी जो (ज्योतिष से क्यों चिह पड़े) हिपटौ साहब को छोड़ सभी कुस्लीन सनातन धर्मी तथा उच्च कक्षा के मार्यसमाजी तक ज्यो. तिष शास्त्र को मानते हैं। हां शद अन्त्यजादि जो समाजमें सम्मिलित हैं। नाई धोबी तेली चमार काही पात्रा कोरी कलार तमोली, ऐसे लोगों के मानने वा न मानन से कोई हानि नहीं हो सक्ती ।सूर्य मण्डल में धलि फेंकने से प्रकाश नहीं हट सकता उल्टी होकर वही धलि फेंकने वाले के म. स्तक की शोभा घटाती है।
प्रियवर ! आज कल के कतिपय न्यूफैशन के जैन्टल मैन इस अमूल्य शाखा रूपी मणि की दुर्दशा करने को कटिवद्ध हैं। परिडत जी को देखते ही कहने लग जाते हैं कि “पण्डित
For Private And Personal Use Only