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मुंबई के जैन मन्दिर
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शिल्पी श्री चंपकलाल कांतिलाल शाह खुद सिरसाड आते और देखरेख में लग जाते, परन्तु देवयोग से एक दिन उनकी दृष्टि उपाश्रय की ओर थी,तभी अचानक हृदयरोग के हमले से नवकार मंत्र का रटन करते करते उपाश्रय के बाजू में ही देह का समाधिमय त्याग किया, बाद में उनके परिवारवाले तथा श्री विनोदराय बचुभाई दोशी द्वारा उपाश्रय का कार्य पूरा हुआ और वर्ष में एक हजार साधु-साध्वीजी भगवन्त विहार करते करते यहाँ स्थिरता करने का लाभ लेते हैं।
वि.सं. २०४४ में गोरेगाँव में ऐतिहासिक अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा वगैरह शासन प्रभावना पूर्ण करके आचार्यदेव श्रीमद् सुबोधसागर सूरीश्वरजी आदि मुनि भगवंतोने गुजरात तरफ जाने का विहार किया, तब यहाँ के उपाश्रय में ४ दिन की स्थिरता की, तब पूज्यपाद श्री को इस रमणीय भूमि पर भव्य तीर्थ निर्माण करने की भावना जागृत हुई। योगानुयोग दूसरे दिन १८८ वर्ष प्राचीन भव्याति भव्य जग प्रसिद्ध श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय की अंजनशलाका प्रतिष्ठा करने एवं चातुर्मास करने की अति आग्रहभरी विनती होने से जय बुलाई गई और सिरसाड से विहार कर पुन: गोडीजी पधारे और वहाँ के ट्रस्ट में आनन्द की वृद्धि हुई।
पूज्य श्री की प्रेरणा और उपदेश के अनुसार आगेवान भाईयोंने सिरसाड में एक भव्य तीर्थधाम पूरा करने के लिये श्री महावीरधाम चेरीटेबल ट्रस्ट का आयोजन किया। इस मंगल निर्णय के होते ही लोद्रा निवासी स्व. श्री कांतिलाल त्रिकमलाल शाह परिवारवालोने चंपकलाल की स्मृतिमें और जामनगर निवासी श्री विनोदराय बचुभाई दोशी परिवारवालोने अल्पा की स्मृति में खूब ही उदारता पूर्वक अपनी विशाल भूमि बिना मूल्य यहाँ के ट्रस्ट को अर्पण की। जिससे इस तीर्थ का निर्माण कार्य उत्साह पूर्वक शुरु किया गया और ६ महिने के समय में देवगुरु की कृपासे संकल्प साकार हुआ और प्रतिष्ठा की शुभ घडी का दिन आ गया।
वीर संवत २५१६ विक्रम संवत २०४६ का मगसर वदि १ तारीख १३-१२-८९ को परम पूज्य योगनिष्ठ आचार्य भगवन्त श्रीमद् बुद्धिसागर सूरीश्वरजी म. के समुदाय के आचार्य भगवन्त श्रीमद् सुबोध सागर सूरीश्वरजी म., आचार्य श्री मनोहर कीर्तिसागर सूरीश्वरजी आदि मुनि भगवन्तो की पावन निश्रा में भव्य प्रतिष्ठा हुई थी।
___ यहाँ मूलनायक श्री महावीर स्वामी (५१") तथा आजू बाजू में श्री आदीश्वर भगवान (३१") एवं श्री शान्तिनाथ प्रभु (३१") की पाषाण की ३ प्रतिमाजी, पंचधातु की २ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी१, विसस्थानक-१, अष्ट मंगल-१ के अलावा श्री पुंडरीक स्वामी (४१") श्री गौतम स्वामी (४१") की प्रतिमाजी, श्री पद्मावती माताजी (५१"), श्री घंटाकर्ण वी (४१"), श्री मणिभद्र वीर (३५"), योगनिष्ठ आ. श्रीमद् बुद्धिसागर सूरीश्वरजी म. (३१") की प्रतिमाजी बिराजमान हैं।
यह नूतन तीर्थ मोहमयी मुंबई नगरी के प्रवेश द्वार में राष्ट्रीय धोरी मार्ग ८ पर ऊँची ऊँची हरियाली पर्वत मालाओं और नैसर्गिक वातावरण के बिच खीण में शिरसाड की भूमि पर मुंबई से ७० कि.मी.
और विरार रेल्वे स्टेशन से ९ कि.मी. दूर के.टी. रीसोर्ट के सामने और वज्रेश्वरी तरफ रास्ते के मोड पर तैयार हुआ हैं।
प्रतिष्ठा के मंगलमय दिन से ही यह तीर्थधाम भारतभर में महाप्रभाव को प्राप्त किया हैं । ६१ फुट ऊंचा अष्टकोण आकारमय देवविमान के समान इस रमणीय जिनालय में ३ वर्ष में ९ बार
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