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मुंबई के जैन मन्दिर
३ खण्डो में सर्व प्रथम जब हम नीचे के भाग में दर्शन के लिये जाते हैं, तो शंखेश्वर पार्श्वप्रभुजी की आरस की चमुखी प्रतिमाजी तथा वर्तमान चोविशी की आरस की २४ प्रतिमाजी, पंच धातु १३ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - १३ तथा अष्टमंगल - ६ का दर्शन होता हैं ।
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जब प्रथम खण्ड पर दर्शन के लिये जाते हैं तो महाविदेह क्षेत्र में विचरनेवाले २० विहरमाण तीर्थंकर प्रभुजी की २० प्रतिमाजी आरस की तथा चऊमुखी आरस की चार प्रतिमाजी शाश्वता जिनेश्वरो श्री ऋषभदेव स्वामी, श्री चन्द्रानन स्वामी, श्री वर्धमान स्वामी, श्री वारिषेण स्वामी का दर्शन होता हैं ।
द्वितिय खण्ड पर पंच धातु की श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की ४ प्रतिमाजी बिराजमान हैं । तृतीय खण्ड पर आरस की श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की ४ प्रतिमाजी बिराजमान हैं । पद्मावती देवी के मन्दिर में श्री पद्मावती देवी - २, चक्रेश्वरी देवी-१, अंबिका देवी - १ सरस्वती देवी-१, लक्ष्मीदेवी-१, तथा १६ विद्या देवीयो के साथ २२ आरस की प्रतिमाजी सुशोभित हैं ।
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गुरुदेवो के मंदिर में गणधर श्री पुंडरीक स्वामी, गणधर श्री गौतम स्वामी, गणधर श्री सुधर्मा स्वामी, तथा आचार्य भगवंत श्री विजय नेमिसूरीश्वरजी म. तथा आचार्य भगवंत श्री लावण्य सूरीश्वरजी म. की ५ गुरु प्रतिमाजी शोभायमान हो रही हैं ।
बाहरी भाग में श्री मणिभद्रवीर एवं श्री नाकोड़ा भैरुजी की अलग अलग देहरीयाँ दर्शनीय हैं। यहाँ धर्मशाला, उपासरा, जैन पाठशाला तथा यहाँ के ट्रस्ट मण्डल द्वारा जैन भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था हैं ।
यहाँ श्री पार्श्व - पद्मावती फाउन्डेशन युवा संघ, श्री नमस्कार मित्र मण्डल, श्री पार्श्व जिन भक्ति महिला मण्डल भक्ति भावना में अग्रसर हैं ।
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आचार्य भगवंत विजय दक्षसूरीश्वरजी म. का समाधि मन्दिर : वि.सं. २०४९ का फागुण वदि ४ ता. ११-३-९३ को ९.५५ मिनट पर आराधना भवन भीवण्डी में आपका स्वर्गवास हुआ था। तथा अग्नि संस्कार वि.सं. २०४९ का फागुण वदि ५ ता. १२-३-९३ को पार्श्वनगर आगाशी में हुआ था। जहाँ आज उनकी स्मृति, समाधि मन्दिर में, समवसरण जिनालय के सामने ही सुशोभित हैं ।
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श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान गृह मन्दिर
चालपेठ, आगाशी तीर्थ मन्दिर के सामने की लाईन में जयेश भुवन, आगाशी (स्टे.) विरार, जि. थाणा (महाराष्ट्र )
टेलिफोन-९१२-५८ ७५४९, मूलचंदभाई मुनवार- २८७२२२७, २८७ २११४
विशेष :- श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आगाशी अचलगच्छ जैन संघ संचालित कच्छ कोटडी महादेवपुरी निवासी मातुश्री अमृतबेन मोनजी तथा दादी माँ मालबाई कोरशी देढीया निर्मित जयेश भुवन
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