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मुंबई के जैन मन्दिर
अशोकचंद्रसूरीश्वरजी म. के शिष्य रत्न पन्यासजी पूज्य श्री पुष्पचन्द्रविजयजी म.सा. की पावन निश्रा में वि.सं. २०५४ का मगसर सुदि ७ शनिवार ता. ६-१२-९७ को १०.१५ को चल प्रतिष्ठा हुई थी।
यहाँ मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी की पाषाण की १ प्रतिमाजी, पंच धातु की १ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी १ बिराजमान हैं।
यहाँ नूतन जिनालय का निर्माण होनेवाला हैं जिसका खात मुहूर्त वि.सं. २०५४ का मगसर सुदि ८ रविवार तारीख ७-१२-९७ को परम पूज्य आ. विजय नेमिसूरि समुदाय के आ. विजय अशोकचंद्रसूरीश्वरजी म. के शिष्य रत्न पंन्यासजी पू. पुष्पचंद्रविजयजी म. की पावन निश्रा में हुआ था।
नूतन जिनालय का निर्माण करनेवाले श्रीमती शान्ताबेन नाथालाल धरमशी मालदे जामनगर (वसई)वाले है जिनको हमारा विशेष अभिनन्दन हैं।
नूतन जिनालय में श्री आदिनाथ भगवान मूलनायक रुप में विराजमान होनेवाले हैं।
भायन्दर (पश्चिम)
(२५१) श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान बावन जिनालय महा प्रासाद
देवचन्दनगर, भायन्दर (प.) जि. थाणा (महाराष्ट्र) ४०१ १०१. टे. फोन : ओ. ८१८ १०४९, सुरेशभाई ३८८ ८७७२, ३८२६८८१
राजेन्द्रभाई घर - ८१८ १२ ०३ विशेष :- जिस समय मुम्बई महानगर और उपनगरो के समस्त विस्तार में, और आगे बढकर मध्य गुजरात के मातरतीर्थ से लेकर महाराष्ट्र - कर्नाटक के सीमा प्रदेश वर्ती निपाणी नगर तक के प्रदेश में अनेकानेक महाजिनालय होने पर भी, कही पर भी एक भी बावन जिनालय महाप्रासाद उपलब्ध नहीं था।
उस समय पूज्यपाद सिद्धान्तरक्षक आचार्य भगवंत श्री विजय प्रतापसूरीश्वरजी म.सा. और सारी मुम्बई महानगरी को जगह जगह पर दिव्य जिनालयो, भव्य उपाश्रयो, आयंबिलशाला, ज्ञानशाला, धर्मशाला, भोजनशाला आदि से धर्मनगरी बनानेवाले प्रबल पुण्यप्रभावशाली युग दिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म.सा. की परम कृपा और आशीर्वाद के साथ उनकी प्रेरणा व मार्गदर्शन से आपके परम भक्त मोढुका (साबरकांठा - गुजरात) हाल मुंबई निवासी धर्मवीर दानवीर श्रेष्ठिवर्य श्री देवचन्द जेठालाल संघवीने भाईन्दर की धन्य धरा पर अपनी भाग्यवती भूमि पर बावन जिनालय महाप्रासाद का निर्माण करने का शुभ निर्णय किया।
बावन जिनालय का मूल विचार, जैन भूगोल में परिदर्शित मध्य लोक के असंख्य द्वीप-समुद्रो के अन्तर्गत अष्टम श्री नन्दीश्वर द्वीप के मध्यगत शाश्वत बावन जिनालयो के अनुकरण रुप हैं।
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