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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किसका बेटा बाप है ? किसका मात ने म्रात ? किसका पति? किसकी प्रिया? किसकी न्यात ने जात?६६ किसका मंदिर मालिया? राज्य ऋद्धि परिवार । खिण विनासी ए सह प्रेम निश्चे चित्त धार ॥६७।। इन्द्र जाल सम ए सहु, जेसो सुपन को राज । जैसी मावा भूतकी, तेसो सकल ए साथ ॥६८। मोह मदिराना पान थी, विकल हुमा जे जीव । तिनकु अति रमणिक लगे, मगन रहे सदैव ॥६६॥ मिथ्या मतिना जोर थी, नवि समजे चित्तमाय । कोड जतन करे बापडो, ग्रे रेहवे को नाहीं ॥६|| ओम जाणो त्रण लोक में, जे पुद्गल पर्याय । तिनकी हुं ममता तजु, धरूं समता चित्त लाय ॥७१।। ग्रेड गरीर नहीं माहरू, अ तो पुद्गल स्कंध । मैं तो चेतन द्रव्य हूं, चिदानंद सुख कंद ॥७२।। अह शरीर का नाश थी, मुझ को नहीं कुछ खेदं । मैं तो अविनाशी सदा, अविचल अकल अभेद ।।७३।। देखो मोह स्वभाव थी, प्रत्यक्ष झूठो जेह । अति ममत। धरी चित्तमां, राखण चाहे तेह ।।७४।। पण ते राखी नवि रहे, चंचल जेह स्वभाव । दुखदाई अ भव विधे, परभव अति दुखदाय ।।७५॥ [७७] For Private And Personal Use Only
SR No.020484
Book TitleMukti Ke Path Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay, Amratlal Modi
PublisherProgressive Printer
Publication Year1974
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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