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इस तरह भवनिवंद, मार्गानुसारिता, सम्यग्दर्शन, देशविरति सर्वं विरति रूप क्रमिक उत्थान के पश्चात् भी कषाय परिणति के उपशम रूप समाधि को पूरी अावश्यकता रहती है, अत: 'समाधि विचार' का संकलन भी उचित ही है । इस सुन्दर और मृदुभाषी काव्य में समाधि की मूलभूत प्रनित्यादि भावनानों का भावपूर्ण निरूपण हैं तथा आराधक आत्मा की परिणति का सुन्दर दर्शन होता है ।
अतः यह लघु पुस्तिका नित्य स्वाध्याय में श्री चतुविध संघ को प्रत्युपयोगी सिद्ध होगी ।
इस पुस्तिका के संग्रहकर्ता श्री अमृतलालजी मोदी M. A. का यह प्रयास अनुमोदनीय है ।
श्री दानसूरीश्वर ज्ञान मंदिर कालुपुर रोड, अहमदाबाद. १५-१-७४
मुनि कुलचन्द्र विजय
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