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इस तथाभव्यत्वादि को पक्व करने के (मात्मामें प्रगट करने के) तीन साधन हैं। चार शरणों का स्वीकार, दुष्कृत गर्दा तथा सुकृतों का सेवन (व अनुमोदन) करना। असो कायव्वमिण होउकामेणं सया सुप्प.. भुज्जो भुजो संकिलेसे, तिकालमसंकिलेसे ॥ ___अत: कल्याणकामी मुमुक्षु को सदा चित्तकी एकाग्रता पूर्वक सक्लेश के समय बारबार तथा संक्लेश न हो तब दिन में तीन बार (त्रिकाल) ऐसा करना चाहिये। जावज्जीवं मे भगवंतो परमतिलोगनाहा अणुत्तर पुण्णसंभाराखीणरागदोसमोहा अचिचितामणि भवजलहिपोप्रा एगंतसरणा अरिहंता सरणं।
ऐश्वर्यादि ऋद्धिवाले, तीनों लोकों के परम नाथ, सर्वोच्च पुण्यवाले, रागद्वेष व मोह जिनके नष्ट हो गये हैं, अचिंत्य चितामणि समान, भवजलतारक (जहाज), एकांत शरण योग्य अरिहंतोकायावज्जीव मुझे शरण हो ।
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