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फिर इसी पंचसूत्र का दूसरा सूत्र, साधु धर्म परि भावना मूल सूत्र दिया है और उसका अर्थ व विवेचन भी उनी पुस्तक के आधार पर दिया है। इसे व्यक्ति समझे और अपने जीवन में उतारे। जीवन किस तरह जीना चाहिये, इत्यादि इससे समझमें आयेगा । मुक्ति पथ पर आगे बढ़ने के लिए पंचसूत्र में जो पांच सीढिये, पांच बाते बताई हैं, इनमें से श्रावक के लिए जरुरी दोनों चीजे यहां दे दी गई हैं। श्रावक अपना जीवन वैमा बनावे, श्रावक जीवन में साधू धर्म की परिभावना करे याने साधू बनने की तैयारी करता रहे । अर्थात जीवन को रागरहित बनाने के लिए आसक्ति रहित बनने का तथा जीवन को शुद्ध रूपसे जीने का प्रयत्न करे ।
अंत समय में समाधि मरण मिले ऐसी हम सब की इच्छा होती है। यही जयवीयराय में खास मांगा है। इसलिए जैन श्रेयस्कर मडल, मेहसाणा की प्रकाशित समाधि विचार पुस्तक को यहां छापा है। उसकी छापने की अनुमति देने के लिए मैं हृदय से संस्था का आभारी हं। उममें से कुछ गाथाएं पुनरुक्ति वाली अथवा उसी बात को ज्यादा स्पष्ट रूप से ही कहने वाली होने से हमने इसमें छोड दी हैं, पर पू० अमरेन्द्र विजयजी म.सा. के आदेशानुसार गाथानों की क्रम संख्या मूल संख्या ही रखी है।
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