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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिमात्रितय राजश्री को मोतियों से वाया गया। सड़कों पर :भीड नहीं समाती थी। कहते हैं अकेले श्री देवकरण मूलजीने इस प्रवेश महोत्सव में २४००) रुपये खर्च किये थे तो फिर अन्य भावुकों के कुल कितने खर्च हुए होंगे इसका विचार पाठक स्वयं करलें । ध्यान रहे यह वह समय था जब अच्छे योग्य आदमी २०) २५) माहवरी से नौकरी कर अपने कुटुंब का निर्वाह सुख से कर सकते थे। अनुमान लगाया जा सकता है कि कितना ठाठ ब शानदार प्रवेश-महोत्सव हुआ होगा। ___ यहां आने पर गुरुदेव की आज्ञा मुजब पंन्यासजो श्री जसमुनिजी म. ने अपने लघु गुरुभ्राता गणिवर श्री हर्षमुनिजी को शुभ मुहूर्त में खूब धामधूम से पंन्यास पदार्पण किया। ___महाराजश्री क्षीण बल तो हुए ही थे। इधर हजारों आदमी नित प्रति महाराजश्री की वाणी का लाभ ले रहे थे, अनेक शासन प्रभावना की प्रवृत्तियां चल रही थी। इसी कारण महाराजश्री के ५८ से ६२ तक ५ चातुर्मास बम्बई में ही हुए । इस बीच १९६० में कलकत्ते के सुप्रसिद्ध जौहरी बाबू बद्रीदासजी रायबहादूर की अध्यक्षता में जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स का अधिवेशन हुआ जिसमें कइ प्रदेशों के अनेक अग्रगण्य आदमी आये थे। ___महाराजश्री सरल स्वभावी थे उन्हें अधिक मोह ममता नहीं थी। पिछले कई वर्षों से उनका विहार क्षेत्र अधिकाश में गुजरात ही रहा। गुजरात में खरतरगञ्छ का प्रचार कम था व तपगच्छ की बाहुल्यता थी तथा उन लोगों को अपने गच्छ का राग भी कुछ अधिकांश में था। महाराजश्रीने देखा कि गच्छ के झगडे में आये For Private and Personal Use Only
SR No.020481
Book TitleMohan Sanjivani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1960
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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