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मारोहतां तेषां मोदो योऽनूत्पदे पदे ॥ लब्धबीजो नव्य एव जानीयात्तं नचेतरः ॥ ११ ॥ पुमरी के पुएमरीक - मृषनं च जिनर्षनम् ॥ दृष्ट्वेनोऽनादिनिचितं कथाशेषं वितेनिरे ॥ १२ ॥ राजादनीं च तचाये | राजमानं पदद्वयम् ॥ प्रदचिणीकृत्य मुक्ते- मार्ग ते दक्षिणं व्यधुः ॥ १३ ॥ वीर्यगुप्तिर्यथा न स्या-न्न स्याच्च तदतिक्रमः ॥ तथा विस्त्रिः | प्रतिदिन - मारोदन्विमलाचलम् ॥ १४ ॥ यात्राणां नवनवते - रासी| त्परिनिर्दृढा ॥ परं ते समयानावा - विजहुश्वात्रसंयुताः ॥ १५ ॥ अथ मल्लिजिनेशं ते जोयनीग्रामवासिनम् ॥ अभिवन्द्य पुरवेलु - यशसा सहिता द्विधा ॥ १६ ॥ क्रमात्सि६ पुरोपान्त - मागचन्मोदनर्षयः ॥ संघः पट्टनवास्येषा - मनून्मार्ग प्रतीकः ॥ १७ ॥ सि६
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