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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदयपुर के मन्दिर ७३ हैं उनमें उदयपुर का नाम लिखा मिलता हो, ऐसे शिलालेख बहुत थोड़े ही हैं। श्री शीतलनाथजी के मन्दिर की धातु की एक मूर्ति पर का शिलालेख अवश्य ही ऐसा है, जिसमें उदयपुर का नाम लिखा दीख पड़ता है। इस शिलालेख का सारांश यों है “सं. १६८६ की वैशाख सुदी ८ के दिन उदयपुर निवासी ओसवाल ज्ञातीय बरडिया गोत्रीय सा- पीथा ने, अपने पुत्रों एवं पौत्रा सहित श्री विमलनाथ का विम्ब बनाया और श्री विजयसिंहरि ने उसकी प्रतिष्ठा की " । इस लेख से यह बात स्पष्ट होजाती है कि सं. १६८६ के साल में खास उदयपुर में ही किसी मन्दिर की प्रतिष्ठा की गई, जिस समय इस मूर्ति की भी प्रतिष्ठा हुई थी। अतएव यह निश्चित है, कि सत्रहवीं शताब्दी के मध्यकाल में, यहाँ जैनमन्दिर अवश्य ही मौजूद था । और यह भी सम्भव है, कि वह मन्दिर श्री शीतलनाथजी का आदि मन्दिर ही हो । . श्री हेम नामक किसी कवि ने, महाराणा जवानसिंहजी के समय का उदयपुर का वर्णन लिखा है । हेम कवि कौन थे ? किसके शिष्य थे ? और निश्चित रूप से किस समय में हुए थे ! आदि बातें उनकी कृति से नहीं जान पड़तीं । किन्तु उन्होंने महाराणा जवानसिंहजी के समय का वर्णन किया है, इससे यह बात प्रकट होती है, कि वे उन्नीसवीं शताब्दी में हुए थे। महाराणा जवानसिंहजी का समय है-सं. १८८५ । अतः मालूम होता है कि For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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