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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदयपुर के मन्दिर मील दूर समीनाखेड़े का मन्दिर तथा लगभग तीन मील दूर बने हुए सेसार का मन्दिर, देवाली का मन्दिर आदि मन्दिर भी खासतौर पर दर्शनीय एवं अत्यन्त प्राचीन हैं। उदयपुर और उसके आसपास लगभग दो-दो तीन तीन मील पर बने हुए मन्दिरों का सम्पूर्ण इतिहास प्राप्त कर सकना कठिन है और उन सब का इतिहास वर्णन करने के लिये यहाँ स्थान भी नहीं है। फिर भी इतनी बात तो अवश्यमेव कही जासकती है , कि इनमें के बहुत से मन्दिर अत्यन्त प्राचीन हैं। आहड एक इतिहास प्रसिद्ध एवं अत्यन्त प्राचीन नगरी है। यहाँ के आलीशान बावन जिनालय मन्दिर, यह बात स्वयमेव बतला रहे हैं, कि वे अत्यन्त प्राचीन हैं। इसी आहड-आघाटपुर—में श्री जगच्चन्द्रसूरि को मेवाड के राणाजी की तरफ से तेरहवीं शताब्दी में 'महातपा' का विरद प्राप्त हुआ था। इसी तरह देवाली, सेसार तथा समीनाखेडे के मन्दिर भी अत्यन्त-प्राचीन हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है, कि अब यहाँ एक भी मूर्तिपूजक जैन का घर मौजूद नहीं है। उदयपुर में जो मन्दिर हैं उनमें से सत्रहवीं शताब्दी से पहले का कोई भी मन्दिर नहीं है और इससे अधिक प्राचीन मन्दिर न हो, यह स्वाभाविक भी है । कारण कि उदयपुर नगर ही महाराणा श्री उदयसिंहजी ने बसाया है, जिनका समय स. १५९४ है। महाराणा उदयसिंहजी ने, उदयपुर सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में (बहुत करके सं. १६२४ में) बसाया है। अतएव उदयपुर में जो For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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