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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - राज्य के साथ जैनों का सम्बन्ध २९ श्वर, देलवाड़ा, अदबदजी, चित्तौड़, कुम्भलगढ़, और आहड़ आदि अनेक तीर्थ मौजूद हैं, कि जहाँ लाखों या करोड़ों की लागत के आलीशान मन्दिर बने हुए हैं । राज्य के साथ के सम्बन्ध का ही यह परिणाम है, कि मेवाड़ के प्रत्येक छोटे मोटे, यहाँतक कि लगभग सभी मन्दिरों तथा यतियों के उपाश्रयों को राज्य की तरफ से कुछ न कुछ जमीन, गाम अथवा नक्द रकम का वर्षासन आज भी बराबर मिलता आ रहा है। मेवाड़ के प्रत्येक गाम के एक छोटेसे छोटे मन्दिर को भी राज्य की तरफसे केशर-चन्दन के निमित्त, २५, ५० या १०० रुपये की रकम बराबर मिलती ही रहती है। (हाँ, स्थानकवासी या तेरह पन्थियों के इन्तिजाम के मन्दिरों में, राज्य की तरफ से प्राप्त होनेवाली रकम का दुरुपयोग होता हो, यह दूसरी बात है। ) राज्य के साथ के जैनों के सम्बन्ध के कारण ही, उदयपुर के महाराणा लोग, समय समय पर उदयपुरमें आनेवाले जैनाचार्यों को, जैन श्रीपज्यों को, मुलाकात का सन्मान देते ही रहे हैं। इतना ही नहीं, बल्कि हीरविजयसूरि तथा ऐसे ही अन्यान्य आचार्यों के उपदेश से, जीवदया आदि के सम्बन्ध में अनेक पट्टे-परवाने कर दिये गये हैं। महाराणा श्री फतेहसिंहजी के समय में, स्व० गुरुदेव श्री विजयधर्मसरिजी महाराज ने महाराणाजी को उपदेश देकर, भिन्नभिन्न स्थानों में कुल २१ जीवों की हिंसा सदा के लिये बन्द करवा दी थी। राज्य के साथ के जैनों के सम्बन्ध का ही यह परिणाम है, कि आघाट में श्री जगचन्द्रसूरि महाराज को, उनकी घोर तपस्या देख कर, 'महातपा' For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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