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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - राज्य के साथ जैनों का सम्बन्ध 'कहैं महाराणा, शाह ऐसी ही तुम्हारी भक्ति, तदपि हमारी गैल नाहक परो हो तुम । धर्मके निमित्त सब सैन बलिदान भई, देखि कै हमारो दुःख नाहक जरो हो तुम ॥ तुर्क सों लरन नई सेना फिर संचय व्है, ते तो धन बूढ़े शाह कहाँ तँ भरो हो तुम । अपने निवास पर क्यों नहीं फिरो हो पीछे, ऐसो हठ भामाशाह नाहक करो हो तुम ॥७३७॥" भामाशाह कहते हैं, कि जिस समय जन्मभूमि पर विपत्ति आ पड़ी हो, उस समय मैं उसकी वह दशा कैसे देख सकता हूँ। ऐसे विकट समय में, मैं अपने देश ओर अपने स्वामी की यथाशक्ति सेवा करने में पीछे कैसे रह सकता हूँ ? आखिर को वे प्रताप से कहते हैं कि “वित्त अनुसार आज सेवा ही बजाउँ कहा ? मालिक के हेतु नाथ ठाढो बिकी जाउं मैं ॥७३८॥" अर्थात्---स्वामी की सेवा के लिये, मैं खड़ा खड़ा बिक जाने को तयार हूँ। धन्य है भामाशाह को ! भामाशाह अपना, सर्वस्व महाराणा प्रताप के चरणों में धर देते हैं। स्वामिभक्ति और देशभक्ति के आदर्श भामाशाह इतिहास के पृष्ठो में अपना अमर नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा गये हैं। कवि ने, भामाशाह की इस भक्ति की भूरि भूरि प्रशंसा कर के, अन्त में सच्चे स्वामिभक्त मुग्रीव के साथ भामाशाह की तुलना करते हुए कहा है, कि For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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