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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्य के साथ जैनों का सम्बन्ध तेजसिंहजी दीवानगीरी के पद पर नियुक्त हुए हैं । उपर बतलाये हुए दीवानलोग, मेवाड़ के प्रचण्ड प्रतापी महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप और महाराणा राजसिंह के समय में ऐसे ऊँचे ओहदे पर मौजूद थे। इतना ही नहीं, बल्कि उस समय मेवाड़ जिस तरह गौरवशाली राज्य गिना जाता था, उसमें इन ओसवाल कुलभूषण महापुरुषों का मुख्य हाथ था। मेवाड राज्य के साथ सम्बन्ध रखनेवाले इन ओसवाल कुलभूषण महापुरुषों में अन्य सब की अपेक्षा, महाराणा प्रताप को अत्यन्त विकट समय में सहायता देनेवाले भामाशाह का नाम सबसे पहले सामने आता है। यद्यपि मेवाड़ की गद्दी पर हुए दूसरे महाराणाओं तथा उनके जैन दीवानों ने, एक या दूसरी तरह के अनेक आदर्श कार्य किये हैं। इन ओसवाल कुलावतंस वीर प्रधानों ने, लड़ाइयों में भाग लेकर, अपने मूल-क्षात्रतेज का भी परिचय दिया है। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी धार्मिक श्रद्धा के परिणाम स्वरुप, हजारों या लाखों रुपये खर्च करके जैन मन्दिरों की रचना करवाई और इस तरह जैन धर्म एवं जैन समाज की सेवा की है । किन्तु, तत्कालीन राणाओं की यशःगाथाऐं जिस तरह शिलालेखों में ही खुदी हुई रह गई उसी तरह उनके दीवानों की यशोगाथाएं भी लगभग उतने ही घेरेमें सीमित रह गई । इसके विपरीत, महाराणा प्रताप का नाम, उनका क्षात्रतेज, उनका स्वदेशामिमान और उनकी धर्मदृढ़ता आदि की दुन्दुभी आज भी दिगदिगन्त में बज रही है, अतः आपत्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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