SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ मेरी मेवाड़यात्रा ध्यान दें और उस असातना सत्ता का उपयोग करे । में कोई रिपोर्ट आवे, तब उस पर वे को दूर करवाने के लिये दी गई सारे मेवाड़ में; शायद ही कोई ऐसा मन्दिर होगा, कि जिसको केशर - चन्दन अथवा अन्य व्यवस्था के लिये दरबार की तरफ से सहायता न मिलती हो। इस सहायता का उपयोग न किया जाय, यह भी एक अपराध है । उदयपुर के महाराणाजी परमदयालु और धर्मात्मा हैं । वे यह बात अवश्यमेव चाहते होंगे, कि मेरे राज्य का किसी भी धर्म का कोई भी मन्दिर, अपूज तो कदापि न रहने पावे । ऐसी अवस्था में, महाराणाजी सा० से प्रार्थना करके, इस प्रकार का हुक्म प्राप्त करने से, मन्दिरों की असातना दूर करने के कार्य में निश्चय ही बहुत कुछ सफलता प्राप्त हो सकती है । आशा है, कि महासभा के महारथीगण, इस बात को अवश्य ही ध्यान में लेंगे और इसके लिये यथासम्भव प्रयत्न भी करेंगे । 1 t -:: For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy