SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेवाड़ के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में करते है । अपने आपको मूर्तिपूजक कहलाते हुए भी, भगवान को पूजा तो महीने में एक दिन या दो दिन ही करते हैं। ग्रामीणव्यवसाय में अधिक समय बेकार बैठे रहने में ही व्यतीत होता है, फिर भी देश के वातावरण का इतना अधिक प्रभाव पड़ा है, कि जिस बात में श्रद्धा रखते हैं, उसका उपयोग भी वे नहीं के बराबर ही करते हैं । तो भी मूर्तिपूजक होने के नाते, वे साधुओं की भक्ति करने और मन्दिरों की सफाई-व्यवस्था में उपयोग अवश्यमेव रखते हैं। इसके अतिरिक्त, मेवाड़ के अनेक ग्रामों में कुछ कुछ सेठों की भी बस्ती है । इस ‘सेठ' जाति का परिचय 'उदयपुर' प्रकरण में कुछ दिया जाचुका है । उनकी एक जाति ही अलग है। वे लोग अधिकतर हलवाई का व्यवसाय करते हैं और प्रायः मूर्तिपूजक-जैन ही हैं। फिर भी, मेवाड़ के उत्तरीय-प्रदेश में उन पर स्थानकवासियों तथा तेरहपन्थियों का कुछ प्रभाव जरूर ही पड़ा है। उनमें दर्शन करने का रिवाज अब भी है । पूजा तो शायद ही कोई करता है । इसके अतिरिक्त, मेवाड़ के किसी किसी ग्राम में मारवाड़ से गये हुए मारवाड़ी भाइयों की भी बस्ती है। जहाँ जहाँ मारवाड़ियों की दूकानें हैं, वहाँ के मन्दिरों की व्यवस्था अवश्य ही कुछ ठीक है । उदाहरण के तौर पर कपासन में मारवाड़ियों की चार दूकानें हैं। लगभग सौ या दो सौ वर्ष से सादड़ी (मारवाड़) से आकर यहाँ ये लोग बसे हैं, फिर भी इन पर स्थानकवासी या तेरहपन्थियों का किंचित् भी प्रभाव नहीं पड़ा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy