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लिपि-विकास
श्रम तथा समय कुछ बच जाता है, परन्तु साथ ही साथ इतनी अस्पश्ता आ जाती है कि पाठक के समय तथा शक्ति की अधिक हानि होती है। इसके अतिरिक्त रोमन में हिन्दी की अपेक्षा स्थान भी अधिक घिरता है, कारण कि हिन्दी वर्गों में अकार सम्मिलित है और अंग्रेजी में अलग से लिखा जाता है यथा 'कलम' में हिन्दी में क + ल + म केवल तीन वर्ण लिखने पड़ते हैं, परन्तु रीमन में k+a+l+ a + m + छः वर्ण लिखने पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त रोमन में कभी कभी एक-एक हिन्दी वरम के लिए कई कई वर्ण लिखने पड़ते हैं उदाहरणार्थ हिन्दी 'छ' के लिए + h+b, ज्ञ के लिए j+n,ष्ट्र के लिये 8 + h+t + r+a, इत्यादि । एक उदाहरण से यह विषय स्पष्ट हो जायगा:
आ प से
न ही MAIN A PSE NAHI बो ल ता
हूँ BOLA TAH U N
अतः स्थान विस्तार की दृष्टि से रोमन की अपेक्षा हिन्दी में कम स्थान घिरता है, तदनुसार छापे में भी कम टाइप लगते हैं
और पढ़ने में कम समय लगता है और दृष्टि को कम श्रम करना पड़ता है। हिन्दी में सिरबन्दी त्वरालेखन में बाधक है, क्योंकि उसके कारण कई बार लेखनी उठानी पड़ती है,। परन्तु इसकी पूर्ति मात्राओं तथा कुछ चिन्हों द्वारा हो जाती
यद्यपि ऊपर नीचे लगने वाली मात्राओं तथा चिह्नों में लेखनो उठाने के कारण कुछ देर अवश्य लगती है, तदपि वर्गों को अपेक्षा कम समय लगता है। यदि इन मात्राओं तथा चिन्हों में कुछ सुधार कर लिए जाय, तो और भी कम समय लगे। यथा इन ऊपर नीचे की मात्राओं तथा चिह्नों के
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