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हिन्दी तथा अन्य लिपियाँ
६५ आदि के पास और ४ , को 5 के पास तथा ० को इनके पश्चात होना चाहिए था, परन्तु ऐसा नहीं है। अतः इनमें न तो ध्वनि क्रम ही है और न रूप क्रम ही। इसके अतिरिक्त रोमन तथा उद में स्वर तथा व्यंजन तक हिले मिल हैं, पृथक-पृथक नहीं है। इसके विरुद्ध हिन्दी में स्वर तथा व्यंजन अलग-अलग हैं। स्वर उसी क्रम से रक्खे गए हैं जिससे कि बच्चे उनको बोलना प्रारम्भ करते हैं । व्यञ्जनों का सप्त वर्गीय वर्गीकरण भी उच्चारण स्थान के अनुसार है। एक स्थान से उच्चरित होने वाले व्यञ्जन एक वर्ग में रक्खे गए हैं। अतः हिन्दी वर्ण क्रम प्राकृतिक तथा वैज्ञानिक है। __ इस प्रकार ध्वनि विचार की दृष्टि से हिन्दी वर्णमाला सर्वश्रेष्ठ है।
(आ) रूप विचार (३) सरलताः-हिन्दी लिपि की सरलता तो सर्वमान्य है। इसके विषय में अधिक कहना अनावश्यक सा है। इसको बच्चा, बूढ़ा, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, देशी, विदेशी सब बड़ी सरलता से सीख लेते हैं। किसी लिपि की सरलता अथवा क्लिष्टता का अनुभव बच्चों द्वारा होता है । अध्यापक नित्य प्रति इसका अनुभव करते हैं कि बच्चे उर्दू तथा अगरेजी की अपेक्षा हिन्दी अति शीघ्र सीख लेते हैं। उर्दू में पृथकतया तो पूर्ण वर्ण लिखे जाते हैं, परन्तु मिलावट में वे शोशे (संक्षिप्त संकेत) हो जाते हैं। शोशों के मिलाने में अधिक कठिनाई होती है, विशेषतः 11 के पूर्व मिलाने में, बच्चे प्रायः ४ को ४ की भाँति लिखते हैं, के पूर्व
मिलाने में भी प्रायः शोशे कम अधिक हो जाते हैं जैसे5 को 5 ~ को , आदि लिख देते हैं। फिर उर्दू की खते शिकस्त (घसीट) अर्थात् अदालती उर्दू लिखना-पढ़ना तो उर्दू के अच्छे ज्ञाताओं तक के लिये
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