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लिपि-विकास
(१३):--काम, घोषा, ताल, त्रयोदश, यक्ष, रत्न, रवि, विश्व, विश्वेदेवा, सरोवर।
(१४):-अश्विनी, कुलाकर, चतुर्दश, जिष्णु तथा उसके पर्याय (इन्द्र, पुरन्दर, शक्र, सुरपति, सुरेश, विडोजा), देव, ध्रुवतारा, यम, रज्जु, रन्न, लोक तथा उसके पर्याय (भुवन, विश्व यादि ), विद्या, स्रोत, स्वप्न ।
(१५):-चन्द्रकला, तिथि, पक्ष, तथा उसका पर्याय (घस्र), पंचदश, वृष ।
(१६):-अंबिका, अष्टि, इन्दुकला तथा उसके पर्याय (शशिकला आदि) उपचार, चित्रभानु, पार्षद, भूप तथा उसके पर्याय ( भूपति, भूपाल, राजा आदि), शृंगार, पोडश, सुर, संस्कार ।
(१७):--अत्यष्टि, कुन्थु, भोजन, मित्र, वारि, वारिद तथा उसके पर्याय ( अंबुद, घन, जीमूत, मेघ, जलद, पयोद आदि) संयम ( अथवा संयम भेद ), सप्तदश ।
(१८):-अध्याय, अष्टादश, तारण, द्वीप, धृति, पुराण,भार, विद्या, स्मृति ।
(१६):-अनिधृति, एकोनविशंति, धन्या पार्थिव, पिंडस्थान, विशेष, संज्ञा।
(२०):-करांगुलि, धृति, रावण-चक्षु अथवा दशकंधर-चक्षु, रावण-भुजा अथवा दशकंधर भुजा, नख, नर, व्यय, विशंति, विंशोपक विश्व, श्रुति ।।
(२१:-उत्कृति, एकविशति, प्रकृति, सर्वजित, स्वर्ग तथा उसके पर्याय ( अमरलोक, अमरालय, देवालय, विधालय सुरलोक, सुरालय)।
(२२):-कृति, जाति, द्वाविंशति, परीषह ।। (२३,:-अक्षौहिणी, जरासंध, त्रयोविंशति, विकृति ।
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