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अंग
आदित्य
४०
लिपि - विकास
निर्णय करने में भूल की है। मोहनलालजी देशाई ने 'जलधि' का ७ का और 'रस' को ६ का बाचक समझ कर सं १६७६ निकाला है और पं० लालचन्दजी तथा प्रो० हीरालालजी ने 'जलधि' को ४ का सूचक मानकर सं० १६४६ निकाला है ।
यहाँ कुछ ऐसे शब्दों की जिनसे एक से अधिक सख्या का बोध होता था, सूची दे देना अनुचित न होगा । सूचित संख्याएँ
शब्द
शब्द
इन्द्र
ईश्वर
काल
कम
करांगुल
व
खर
गज
गिरि
गुण
गुति
गो
गोव चन्द्रकला
विद्र और उसके (पर्याय रंध्र) जगती
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५,६,७,८,११
१, १२
१, २४
४, ११
३, ६
८, १२
४, ५, २०
०, ६
६, ७
३. ८
५, ७
३. ६.६
३, ६
१,
१, ७
१५, १६
० ह
१२, ४८
जीव
तत्त्व
दंड
दिशा (और
उसके पर्याय
दिक दिशित
आदि )
द्वीप
दुर्ग
नरक
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नाग
पक्ष ( और
उसका पर्याय
घस्र )
पंक्ति
पर्वत
पवन ( तथा
उसके पर्याय
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सूचित संख्याए
१, ६
५,७,६,२५,२८
१, ३
४, ८, १०
७, ८, १८
६, १०,
७, ४०
७, ८
२, १५
०, १०