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लिपि-विकास
तीसरे आजकल जिस प्रकारशन्य (०) बढ़ा कर दहाई, सैकड़ा, हजार आदि बनाने का नियम है प्राचीन काल में वैसा न था: उस समय १०, २०, ३०,४०,५०,६०, ७०, ८०, ६०, १००, १००० के लिए पृथक्-पृथक चिह्न थे ( इसके ऊपर के संख्या-चिह्न अप्राप्य हैं ) जैसे ४० के लिए 'स' ६०, के लिए 'प्र', इत्यादि अर्थात दहाई सैकड़ा आदि का बोध उर्दू रकमों की भाँति अक्षरों जैसे चिह्नों से होता था। इसकी पुष्टि अोझा जी के इस कथन से होती है कि, 'इन अंकों में अनु गसिक, जिव्हामूलीय और उपध्मानीय का होना प्रकट करता है कि उनका ब्राह्मणों ने निमाण किया था न कि वाणिों ने और न बौद्धों ने।' १ वर्षों के अंक द्योतक होने के उदाहरण अन्य लिपियों में भी पाए जाते हैं जैसे रोमन अंक I. V. X. L. M श्रादि, ग्रीक अंक, A B आदि, उदू ,r श्रादि, हिन्दी ५ का प्राचीन रूपए , इत्यादि । अरबी में तो ८वीं शता० तक १ से १००० तक की सभी गिन्तियाँ वणों में थी यथा। ----------------क्रमशः १,२,३, ४ ५. ६, ७, ८, ६, के --------------" , क्रमशः १०, २०, ३०, ४०, ५. ६०, ७०, ८०, ६, के और -------- --- क्रमशः १००, २००, ३००, ४००, ५००, ६००, ७८०,८००, ६००. १०००, के द्योतक थे।
इस प्रकार भारतवर्ष में १ से EEEEE तक की संख्या प्रदर्शित करने के लिए २० चिन्ह थे, ६ अंक और ११ अक्षरांक । अतः ११ से १६ तक की संख्या लिखने के लिए पहिले दहाई का चिह्न
और उसके आगे इकाई का अंक लिखा जाता था, उदाहरणार्थ यदि ४७ लिखना है, तो ४०+७ अथात् पहिले ४० का चिन्ह और उसके आगे ७ का अंक लिख दिया जाता था। २८० के
१ श्रोमा, 'प्राचीन लिपिमाला' पृष्ठ ११.
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