________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२
लिपि-विकास हरणार्थ ध, त, यो व्यञ्जन उसे पाए जाते हैं तथा कुछ संयुक्त व्यञ्जनों में भी उलट-फेर है यथा प्त, त्स, य्व के स्थान में स्प, स्त व्य आदि खुदे हुए पाए जाते हैं । इस पर ओझा आदि विद्वानों का कहना है कि इधर सेमिटिक में केवल २२ वर्ण १८ उच्चारणध्वनियों के दबोतक हैं, वर्णों में न तो क्रम ही है और न स्वरव्यञ्जन विभाग तथा स्वरों में ह्रस्व-दीर्घ का भेद ही. और मात्राओं तथा संयुक्ताक्षरों का भी अभाव है, उधर ब्राह्मी में ६३ ६४ वर्ण हैं, व्यञ्जनों के साथ स्वरों का मात्रा के रूप में सहयोग होना केवल ब्राह्मी की ही विशेषना है और प्रत्येक श्वनि के लिए एक पृथक लिपिचिह्न है, यहाँ तक कि अनुस्वार तक का एक पृथक चिन्ह है। अतः यह असम्भव है कि ६३.६४ मूल उच्चारणों वाली सर्व प्रकार से पूर्ण ब्राह्मी लिपि एक २२ वर्ण वाली सेमिः टिक जैसी दरिद्र लिपि से निष्क्रमित हो और स्वयं २२ वर्ण भी न बना सके। अतः बूहलर के मत का बराबर विरोध होता रहा। १६५७ ई० में हैदराबाद की समाधियों में मिले बर्तनों तथा पत्थरों की खुदाई से बूहलर का मत निराधार सिद्ध हो गया। उन बर्तनों के पाँच लिपिचिन्ह स्पष्टतया अशोक कालीन लिपि से मिलते हैं। इन पत्थरों की भुराभुराहट से, जो कि हाथ लगते ही चूर-चूर हो गए जायसवाल का अनुमान है कि लगभग २:०० ई० पू० के हैं इस प्रकार ब्राह्मी की उत्पत्ति सेमिटिक काल अर्थात १००० ई० पू० के पूर्व हो चुकी थी। जायसवाल ने तो ब्राह्मी के सेमिटिक उद्भव का इतना विरोध किया है कि अनेक युक्तियों से सामी को ही ब्राह्मी से उत्पादित ठहराया है। उन का मत है कि ब्राह्मी तथा सामी वर्गों में समानता इसलिए नहीं है कि ब्राह्मी सामी से निकली है, अपितु इसलिए है कि सेमिटिक रूपों की उत्पत्ति ब्राह्मी से हुई हैं। क्योंकि उत्तरी तथा दक्षिणी सामी में एक ही उच्चारण के लिए भिन्न-भिन्न चिन्ह हैं, परन्तु वे सब ब्राह्मी
For Private And Personal Use Only