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लिपि का आविष्कार --' लगा देते थे, उसी प्रकार अनुनासिक ध्वनियों के साथ
( विन्दु) का प्रयोग होता है । इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि स्काउटिंग, पुलिस आदि में लम्बी तथा छोटी आवाजों को व्यक्त करने के लिए क्रमशः चिन्हों का प्रयोग होता है। जैसे -. -.--, - - - - -, इत्यादि। अतः ङ, न, म, आदि अनुनासिक ध्वनियों के स्वरूप रेखा तथा विन्दु द्वारा निर्मित नं०३६, ३७
आदि रहे होंगे जैसा कि विभिन्न देशों की अनुनासिक ध्वनियों के प्राचीन लिपि-चिन्हों से प्रकट है-यथा वैदिक नं०३८,३६ समर नं०४०, ४१ भित्र नं०४२, ४३ फिनीशियन नं० ४४, ३३ वल्म नं०४५, ४६ हिन्दी ङ, , उर्दू 0 इत्यादि से । अतः अनेकों ध्वनियों के लिपि-चिन्हों का निर्माण उनके उच्चारण में भाषणावयवों द्वारा उत्पन्न होने वाली आकृतियों के भद्दे चित्रों द्वारा हुआ है। प्राचीन काल में रोम तथा मिस्र में इस प्रकार की ध्वन्यात्मक लिपि प्रचलित थी। वर्णमाला का प्रचार सर्व प्रथम मिस्र में हुआ। वर्णों के आधुनिक अष्टवर्ग, अोष्टय, दन्त्य, तालव्य कंठ आदि से भी भापणावयवों का महत्व प्रकट होता है। International Phonetis Association द्वारा Phonograph ( फोनोग्राफ) की सहायता से आविष्कृत धन्यात्मक लिपि ( phonetic script) इसी का विकसित रूप है। ब्राह्मी आदि प्रत्येकलिपि के वर्णों तथा अङ्कों की उत्पत्ति तथा विकास इसी क्रमानुसार हुआ है।
अब प्रश्न केवल इतना रह जाता है कि ध्वन्यात्मक लिपि द्वारा वर्गों का आविष्कार होने पर वे वैसे ही रहे अथवा उनमें फिर कुछ परिवर्तन हुआ। किसी भी देश अथवा भाषा की आधुनिक तथा प्राचीन लिपियों के तुलनात्मक अध्ययन से प्रकट होता है कि वे एक दूसरे से नितान्त भिन्न हैं। आधुनिक लिपियाँ प्राचीन लिपियों का परिपक्व, विकसित तथा उन्नत स्वरूप प्रतीत
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