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वडगामे प्रतिमा बड़ी चि. बौद्धमलनी दोय जी० तिलियाभिराम कहे तिहाँ चि. वासी लोक जे होय जी. ४ उपर्युक्त तीर्थ यात्री संघों के वर्णन के पश्चात सौ वर्ष पूर्व अहमदाबाद की सेठानी हरकोर और सेठ उमाभाई का संघ जो रेल द्वारा यात्रा करने आया था, यहाँ का वर्णन समेतशिखर के ढालियों में इस प्रकार किया है
"तीरथ नमी चित चालियो रे लोल, गोबरगाँव थई आवियो रे लोल । गौतम स्वामी ने वाँदी ने रे लोल, चइतर सुदि तेरस दिने रे लोल ।”
श्वेताम्बर जैन साहित्य में जितने नालन्दा के सम्बन्ध में विशद उल्लेख मिलते हैं उनकी तुलना में दिगम्बर साहित्य में नगण्य है। श्वे. साहित्य में सर्वत्र गौतम स्वामी की जन्मभूमि ही इस स्थान को बतलाया है जब कि दि० ज्ञानसागर कृत सर्व तीर्थ वन्दना गौतम स्वामी का निर्वाण स्थान वड़गाम बताया है। यत :
वर्धमान जिनदेव ताको प्रथम सुगणधर । गौतम स्वामी नाम पापहरण सवि सुखकर ।। खंड्या कर्म प्रचण्ड परम केवल पद पावो । श्रेणिक बैठे पास द्विविध धर्म प्रगटायो ।। वड़गामे आवीकरी कर्म हणी मुगते गयो ।
ब्रह्म ज्ञानसागर वदति वंदत मुझ बहु सुख थयो ।।७२।। तीर्थबन्दन संग्रह के पृ० १७३ में डा. विद्याधर जोहरापुरकर M.A. PHD. बड़गाम के सम्बन्ध में लिखते हैं मि-"प्राचीन नालन्दा गाम का ही यह मध्ययुगीन नाम है।" .. __ ऊपर के वर्णनों में हम देखते हैं कि भगवान महावीर के चौदह चातुमास के स्थान नालन्दा को बड़गाँव मानने में सभी एक मत है, गौतम स्वामी की जन्मभूमि गुम्वरगाँव भी इसे ही बताया गया है। आज भी हम इसे बड़याँव, गोबरगाँव और नालन्दा कहते हैं । गत सौ वर्षों से कुण्डलपुर नया नाम प्रसिद्धि में आ गया जिसका हमें प्राचीन साहित्य में कहीं नाम निशान नहीं मिलता । दिगम्बर समाज ने इसे भ. महावीर की जन्मभूमि कुंडलपुर (कुंडपुर-क्षत्रियकुंडपुर) मान लिया और उन्होंने बस्ती के बाहर खेतों के बीच एक मील दूरी पर ६०.७० वर्ष पूर्व धर्मशाला व मन्दिर निर्माण करा लिया। दिगम्बरों के देखादेख श्वेताम्बर समाज भी इसे कुण्डलपुर कहने लग गया प्रतीत होता है ।
नालन्दा के वर्णन में कवि हंससोम वहाँ १६ मन्दिर और एक स्तूप, कवि पुण्यसागर ६ मन्दिर और एक स्तूप लिखते है जो अवांतर मन्दिरों को एक गिनने से हो सकता है क्योंकि उसके बाद भी कवि वीरविजय बहुत से १०]
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