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क्षमा ऋषि.
पहला परिच्छेद.
वैराग्य प्राप्ति. ग्यारहवीं सदी में अनेक धर्मात्मा-धर्मधुरधर-शासनप्रभावक पुरुषरत्न इस रत्नप्रसू पृथ्वीको अलंकृत करके परोपकारी जीवनद्वारा विश्वोपजीवी अमरनामके धारक हो चुके हैं । जिनके विनश्वर शरीरोंके आज न होने पर भी उनके विश्वजनीन-लोकप्रियआबालगोपाल-विख्यात विशद कीर्तिका गान कानोंको पवित्र और आप्यायित, कर रहा है । योगियोंमें ललामभूत-त्यागियों में अग्रगण्य-चारित्रपात्रमें चूडामणि-श्रीमान्-'यशो
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