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भ० ऋषभदेव की प्रतिमा के प्रकट होने पर इस क्षेत्र का अतिशय बढ़ने लगा और इसी अतिशय के कारण जिन मन्दिर का निर्माण हुआ । मूल मन्दिर दिगम्बर जैन ही है तथापि श्री केशरियाजी के अतिशय (चमत्कार) से सार्वजनिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। तभी तो अोझाजो कहते हैं-हिन्दुस्तान भर में यही एक ऐसा मन्दिर हैं जहाँ दिगम्बर तथा श्वेताम्बर जैन वेष्णव, शैब, भोल एवम् तमाम सशूद्र स्नान कर समान रुप से मुर्ति का पूजन करते हैं।"
तीर्थ के परम वोतराग-निर्ग्रन्थ-मूलनायक की पद्मासन विराजमान प्रतिमाजो पर अत्यधिक केशर चढ़ाने से भ० ऋषभदेव को केशरियाजी या केशरियानाथ भी कहते हैं
और धुलेव नगर भो केशरियाजी की संज्ञा से प्रसिद्ध हैं । इस • पावन भूमि पर प्रतिवर्ष सहस्त्रों नरनारी पाकर हृदयहारी प्रतिमा के दर्शन कर अपने को धन्य मानते हैं ।
ऋषभदेव का पुराना नाम धुलेन है । प्रारम्भ में धुलेव ग्राम के खडक प्रान्त के “जवास पट्ट में था । जवास-राव ने जब इसे श्री केशरियाजो को भेट कर दिया तब ग्राम कि व्यवस्था दि० काष्ठासंघ के भट्टारकों द्वारा होने लगी। तदुपरान्त बहुत समय के बाद औ० ब्राह्मणों को अवसर मिला और फिर किसी विशेष कारण से तिथ की देखभाल वि० स० १६३४ के लगभग उदयपुर के महाराणा द्वारा होने लगी श्री केशरित्राजी का मन्दिर (तोर्थ) “सेल्फ सपोर्टिग" माना गया हैं । इस समय का तीथ का संरक्षण राजस्थान सरकार के अन्तर्गत देवस्थान विभाग द्वारा एक ट्रस्टी के रुप में हो रहा है । यह ट्रस्ट जैन समाज के प्रति पूर्णतः उत्तरदायी है ।
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