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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
तीसरा
व्याख्यान
अनुवाद
113811
到朝馬辑朝朝
* उचित नहीं, यह विचार कर देव गुरुजन सम्बन्धी प्रशस्त धर्मकथाओं से स्वप्न जागरिका करती है । स्वयं जागती हुई है - सेवक सखीजनों को जगाती हुई और धर्मकथाओं द्वारा रात्रि को व्यतीत करती है।
अब प्रातःकाल होने पर सिद्धार्थ राजा अपने सेवकों को बुलाकर कहता है-हे महानुभावों ! आज उत्सव का दिन है इसलिए जाओ बाहर की उपस्थानशाला-बैठक को साफ कराओ, सुगंधवाले जल का छिड़काव कराओं, गोबर आदि से लिपाओ, पंचवर्णीय सुंगधवाले पुष्पों से सुगंधित कराओ तथा सुलगते हुए कृष्णागुरू, कुन्दरूष्क, तुरूष्क आदि उत्तम प्रकार के धूप से मधमघायमान् करो, यह सब कार्य तुम स्वयं करो और दूसरों से कराओ तथा शीघ ही वापिस आकर आज्ञापालन की खबर दो । उन आज्ञाकारी राजपुरुषों ने विनययुक्त हाथ जोड़कर राजा की आज्ञा सुनी और उसे स्वीकार कर वहां से चले गये । थोड़ी ही देर में उन्होंने राजाज्ञा के अनुसार सर्व कार्य कर के राजा के पास वापिस आकर निवेदन कर दिया।
सिद्धार्थ राजा का दैनिक कार्यक्रम इधर सूर्योदय के समय सरोवरों में कमल विकसित होने लगे, रात्रि में कृष्ण मृगों के निद्रा से मिचे हुए नेत्र खुलने लगे, लाल अशोक वृक्ष की कान्तिसमूह, फले हुए केसू के पुष्प, तोते के मुख, चणोटी-गुंजा के
अर्ध भाग, कबूतर के पैर, क्रोधित कोकिल के नेत्र, जासूद के पुष्प, जातिवान् हिंगुल के पुंज तुल्य, बन्धुक * लाल पुष्प के समान रक्तवर्णवाला प्रभात समय हुआ । जगत्भर में कुंकुम समान लालिमा छा गई, दिशायें *
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