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5 मालुम होता है । उसके दोनों नेत्र निर्मल कमल पत्र के सदृश दीर्घ तथा विशाल हैं । उसने शोभा के लिए हाथ में कमल एका पंखा लिया हुआ है उस से हिलते समय मकरंद झरता है । उसका केशपाश स्वच्छ, सघन, काला तथा कमर तक
लम्बायमान है ।1।
। दूसरा व्याख्यान समाप्त हुआ ।
।। तीसरा व्याख्यान ।। अब पंचम स्वप्न में त्रिशला क्षत्रियाणी आकाश से उतरती हुई दो पुष्पमालायें देखती है । उस मालायुग्म में कल्पवृक्ष के पुष्प, चपा, नाग, पुन्नाग, प्रियंगु, सिरीष, मोगरा, मालती, जाई, जई, अकोल, कुटज, कोरंट, दमनक,
बकुल, पाटल, तिलक, वासंतिक, नवमल्लिका, कुन्द, मुचकुन्द, सूर्य और चंद्राविकाशी कमल, उत्पल, पुण्डरीक आदि LA के पुष्प लगे हुए हैं । उन मालाओं में आम की मंजरियां भी लगी हुई हैं । छही ऋतुओं में पैदा होनेवाले पंचवर्णीय पुष्पों
से वे मालायें गुंथी हुई हैं, श्वेत वर्ण के पुष्प उनमें अधिक हैं, अन्य विविध रंगवाले पुष्प भी उनमें यथायोग्य स्थान पर * गूंथे हुए हैं जिस से वह मालायुग्म अत्यन्त शोभनीक मनोहर देख पडता है । उसके अनेक वर्णीय पुष्पों की सुगन्ध से
आकर्षित हो अनेक भ्रमर गुनगनाहट शब्द कर रहे हैं 15।
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