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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 113211 40 500 40 5000 400040 筑 www.kobatirth.org देखती है 121 पूर्वोक्त बैल को देखे बाद आकाश से उतरते और अपने मुख में प्रवेश करते हुए त्रिशला माता एक सिंह को देखती है । वह सिंह- हारसमूह, क्षीरसागर, चंद्रकिरणों, रजत पर्वत और जलबिन्दुओं के समान उज्ज्वल था । मनोहर होने से दर्शनीय, दृढ़ एवं प्रधान पंजोयुक्त, पुष्ट, तीक्ष्ण दाढाओं से अलंकृत मुखवाला, सुसंस्कारित जातिमान कमल के तुल्य कोमल और प्रमाणोपेत प्रधान होठों से युक्त, लाल कमल पत्र के समान कोमल एवं प्रधान जिव्हा तथा तालु से सुशोभित वाला वह सिंह था । सुनार की कुठाली में तपे हुए आवर्तवान उत्तम सुवर्ण के समान गोल और निर्मल बिजली के तुल्य नेत्रवान्, विशाल, परिपुष्ट और प्रधान जंघायें धारण करने वाले परिपूर्ण एवं निर्मल कंघे युक्त, कोमल. सूक्ष्म, उज्ज्वल श्रेष्ठ लक्षणवाली और दीर्घ केशराओं के धारण करनेवाले, उन्नत कृण्डलाकार एवं शोभायमान पुच्छवाले, तीक्ष्ण नाखून युक्त और सौम्याकृतिवान्, सुन्दर तथा विलासवाली गति से उतरते हुए सिंह को माता देखती है |3| 2 अब चौथे स्वप्न में पूर्ण चंद्रमा के समान मुखवाली त्रिशलादेवी ने कमल युक्त इंद्र के कमल में निवास करने वाली लक्ष्मीदेवी को देखा । लक्ष्मीदेवी के निवास स्थान का वर्णन निम्न प्रकार है-एक सौ योजन ऊंचा, बारह कला अधिक एक हजार और बावन योजन लम्बा सुवर्णमय एक हिमालय पर्वत स्थित है । उस पर दश योजन की गहराई वाला, पांच सौ योजन विशाल और एक हजार योजन लंबा वज्रमय तलभागवाला पद्महद्र नामक एक For Private and Personal Use Only 400 500 485000 500 40 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूसरा व्याख्यान
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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