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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र प्रथम हिन्दी व्याख्यान अनुवाद ||14।। Pउन स्वप्नों के अर्थ का विचार करता है । विचार कर अपने स्वभाविक मतिज्ञान बुद्धि विज्ञान से अर्थ निश्चय करता है। S फिर वह स्वप्नों के अर्थ का निश्चय कर के देवानन्दा ब्राह्मणी से बोला कि हे देवानुप्रिये ! तुमने उदार, . कल्याणकारी, धनदायक, मांगल्यरूप और शोभायुक्त स्वप्न देखे हैं । वे आरोग्य, दीर्घायु, संतोष, कल्याण उपद्रव का न होना और मनोवांछित फलप्राप्ति कराने वाले हैं । हे देवानुप्रिये ! इस से तुम्हें अर्थ का लाभ, भोग ॐ का लाभ, पुत्र का लाभ और यावत् सुख का लाभ प्राप्त होगा । तुम्हें नव मास और साढ़े सात दिन बीतने पर है एक उत्तम पुत्र का जन्म देओगे । लक्षण, व्यंजन और हस्तरेखा आदि का स्वरूप वर्णन । वह पुत्र कोमल हाथ पैरों वाला, पंचेद्रिय परिपूर्ण सुन्दर शरीरवाला और व्यंजन लक्षणादि शारीरिक प्रशस्त *लक्षणों से युक्त होगा । छत्र चामरादि शारीरिक प्रशस्त लक्षण चक्रवर्ती और तीर्थंकरों के एक हजार और आठ लक्षण होते हैं । बलदेव और वासुदेव के एक सौ आठ लक्षण होते हैं और दूसरे भाग्यवान् मनुष्यों के बत्तीस लक्षण होते हैं । वे बत्तीस लक्षण निम्न प्रकार के होते हैं - छत्र, कमल, रथ, वज, कछुवा, अंकुश, वापिका, धनुष्य, स्वस्तिक, चंदरवाल, सरोवर, केशरीसिंह, रूद्र, शंख, चक्र, हस्ती, समुद्र, कलश, महल-मकान, मत्स्य, यव, यज्ञस्तंभ, स्तूप, कमंडल, पर्वत, चामर, 600 000000 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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