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________________ Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org 9 कराना चाहिये । उसमें प्रासुक जल से सिर धो कर प्रासुक पानी से नापित के हाथ भी घुलाना चाहिये । जो पर उस तरह से मुंडन कराने में असमर्थ हो या जिसके सिर में फुन्सी फोड़े निकले हुए हों उसको कैंची से केश LE कतरवाने कल्पते हैं । जो लोच सहन कर सके उसे महिने महिने बाद मुंडन कराना चाहिये । यदि कैंची से कतरावे तो पंद्रह पंद्रह दिन के बाद गुप्त रीति से कतरवाना चाहिये । मुंडन कराने और कतरवाने का प्रायश्चित निशिथसूत्र में कथन किये यथासंख्य लघु गुरूभास समझना चाहिये । लोच 6 महीने करना चाहिये । परन्तु 2 स्थविरकल्पी साधुओं में स्थविर जो वृद्ध हो उसे बुढ़ापे से जरजरित हो जाने के कारण तथा नेत्रों का रक्षण करने के लिए एक वर्ष के बाद लोच कराना चाहिये और तरूण को चार मास बाद लोच करना चाहिये 1571 तेइसवां चातुर्मास रहे साधु साध्वी को पर्युषणा बाद क्लेश पैदा करनेवाला वचन बोलना नहीं कल्पता । जो साधु या साध्वी क्लेशकारी वचन बोले उसे ऐसा कहना चाहिये । हे आर्य ! तुम आचार बिना बोलते हो क्योंकि पर्युषणा के दिन से पहले या उसी दिन बोले हुए क्लेशकारी वचन के लिए तो तुमने पर्युषणा पर्व में क्षमापना की हैं । अब जो पर्युषणा के दिन से पहले या उसी दिन बोले हुए क्लेशकारी वचन के लिए तो तुमने पर्युषणा पर्व में क्षमापना की है । अब जो पर्युषणा के बाद म तुम फिर क्लेशकारी वचन बोलते हो यह अनाचार है । इस प्रकार निवारण करने पर भी जो साधु न साध्वी क्लेश उत्पन्न करनेवाले वचन पर्युषणा बाद बोले तो उसे पनवाड़ी के पान की तरह संघ बाहिर करना चाहिये । जैसे पनवाड़ी सड़े हुए पान को दूसरे पान के नष्ट होने के भय से निकाल देता है, है उसी प्रकार अनन्तातुबंधी क्रोधवाला साधु भी विनष्ट ही है, ऐसा समझ कर उसे दूर कर देना उचित For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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