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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी नौवा व्याख्यान अनुवाद ||15211 है और परिहर ने चाहिये । ये सूक्ष्म अंडे समझना चाहिये । लयन जीवों का आश्रयस्थान । शिष्य के पूछने पर गुरू उसके बतलाते हैं-सूक्ष्म लयन-बिल पांच प्रकार के हैं उत्तिंग गर्द भाकार के जीवों के रहने का स्थान, भूमि पर बनाया हुआ उनका जो घर है उसे उत्तिंगलयन कहते हैं । भृगु-सूकी हुई जमीन की रेखा पानी सूक जाने पर • क्यारे आदि मे जो तरड़े पड़ जाती हैं वह भृगुलयन कहलाता है । सरल बिल-सीधा बिल वह सरल लयन समझना चाहिये । तालवृक्ष के मूल के आकारवाला नीचे चौड़ा और ऊपर सूक्ष्म ऐसा जो है वह तालमुख 1- शंबुकावर्त्त-भ्रमर का घर होता है । ये पांचों छद्मस्थ साधु साध्वियों को जानने, देखने और परिहर ने चाहिये । ये सूक्ष्मबिल जानना चाहिये । अब शिष्य के पूछने पर गुरू स्नेह अप्काय के भेद बतलाते हैं । अवश्याय ओस जो आकाश से रात्रि के समय पानी पड़ता है । हिम तो प्रसिद्ध ही है । महिका-धूमरी । ओले प्रसिद्ध हैं और भीनी जमीन में से निकले हुए तृण के अग्र भाग पर बिन्दुरूप जल जो यव के अंकुरादि पर देख पड़ते हैं । ये पांच प्रकार के अपकाय साधु साध्वियों को जानने, देखने और परिहर ने चाहिये । ये सूक्ष्म स्नेह समझ लेना चाहिये। R सतरहवां चातुर्मास रहे साधु भातपानी के लिये गृहस्थ के घर जाना आना चाहे तो उन्हें पूछे सिवाय जाना आना नहीं कल्पता । किसको पूछना सो कहते हैं । सूत्रार्थ के देनेवाले आचार्य को । सूत्र पढ़ाने वाले उपाध्याय को । ज्ञानादि के विषय में शिथल होते हुए को स्थिर करनेवाले और उद्यम करनेवालों को, उत्तेजन देनेवाले 獎獲的使 152 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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