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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र नौवा हिन्दी व्याख्यान अनुवाद 1115111 *छनास्थ साधु साध्वियों को बारंबार जहां जहां वे स्थान करें वहां वहां पर सूत्र के उपदेश द्वारा जानने चाहिये । प आंखों से देखना है और देख तथा जान कर परिहरने योग्य होने से विचारने योग्य हैं । वे आठ सूक्ष्म इस प्रकार हैं- सूक्ष्म जीव, सूक्ष्म पनक फुल्लि, सूक्ष्म बीज, सूक्ष्म हरित, सूक्ष्म पुष्प, सूक्ष्म अंडे, सूक्ष्म बिल और सूक्ष्म स्नेह-अप्काय । वे कौनसे सूक्ष्म जीव हैं ? ऐसा शिष्य का प्रश्न होने पर गुरू कहते हैं-तीर्थकरें और गणE रों ने पांच प्रकार के-वर्ण के सूक्ष्म जीव कहे हैं- काले, नीले, लाल, पीले, और धौले(सफेद) एक वर्ण में हजारों भेद और बहुत प्रकार के संयोग हैं । वे सब कृष्ण आदि पांचों वर्ण में अवतरते हैं-समाविष्ट होते हैं । अणुद्धरी नामक कुंथुवे की जाति है जो स्थिर रही हुई. हलनचलन न करती हो उस वक्त छदास्थ साधु साध्वियों को तुरन्त नजर नहीं आती और जो अस्थिर हो, जब चलती हो तब छदास्थ साधु साध्वीयों को नजर आती है । इस लिए छदारूप साधु-साध्वियों को उन सूक्ष्म प्राणों -जीवों के बारंबार जानना, देखना और परिहरना चाहिये । क्योंकि वे चलते हुए ही मालूम होते हैं किन्तु स्थिर रहे मालूम नहीं होते । दूसरे सूक्ष्म पनक कौनसी है ? शिष्य के ऐसा प्रश्न करने पर गुरू कहते हैं कि सूक्ष्म पनक पांच प्रकार का कहा है, जो इस तरह है - काला, नीला, लाल, पीला और सफेद । सूक्ष्म पनक एक जाति है जिस में वे जीव उत्पन्न होते है । जहां पर वह सूक्ष्म पनक पैदा होती है वहां पर वह उसी द्रव्य के समान वर्णवाली होते है । वह पनक की जाति छदास्थ साधु साध्वीयों को जाननी, देखनी और परिहरनी चाहिये । वह प्रायः शरद् ऋतु, For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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