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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी नौवा व्याख्यान अनुवाद ||15011 दो साघु और एक साध्वी को साथ रहना नहीं कल्पता । दो साधु और दो साध्वियों को साथ रहना नहीं कल्पता । यदि वहां कोई पांचवां क्षुल्लक-छोटा चेला या चेली हो वह स्थान दूसरों की दृष्टिका विषय हो-दूसरे देख सकते हों अथवा वह स्थान बहुत से द्वारवाला हो तो साथ रहना कल्पता है । भावार्थ यह है कि - एक साधु को एक साध्वी के साथ रहना नहीं कल्पता, एक साधु को दो साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता, दो साधुओं को एक साध्वी के साथ रहना नहीं कल्पता । एवं दो साधुओं को दो साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता । यदि कोई लघु शिष्य या शिष्या पांचवां साक्षी हो तो रहना कल्पता है । अथवा वृष्टि विराम न पाने पर अपना कार्य न छोड़नेवाले लुहारादि की दृष्टि से या उस घर के किसी भी दरवाजे में किसी पांचवें के बिना भी रहना कल्पता है । चातुर्मास रहे साधु को गृहस्थ के घर भिक्षा लेने के लिए आगे कथन करते हैं उस प्रकार रहना न कल्पे । वहां एक साधु के एक श्राविका के साथ रहना न कल्पे इस तरह चौभंगी होती है । यदि यहां पर कोई भी पांचवां स्थविर या स्थविरा साक्षी हो तो रहना कल्पता है । या अन्य कोई देख सके ऐसा स्थान हो या बहुत दरवाजे वाला वह स्थान हो तो साथ रहना कल्पता है । इसी प्रकार साध्वी और गृहस्थ की चतुर्भगी समझना चाहिये। यहां पर साधु का एकाकीपन बतलाया है । किसी कारण साधु को एकला जाना पड़े उसके लिए समझना चाहिये । सांघाटिक में अन्य किसी साधु को उपवास हो या असुख होने से ऐसा बनता है । अन्यथा उत्सर्ग मार्ग में तो साधु दो और साध्वी तीन साथ विचरें ऐसा समझना चाहिये । elane ) For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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