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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kubatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie श्री कल्पसूत्र नौवा हिन्दी व्याख्यान अनुवाद 1114911 " पानी के लिए जाना आना कल्पता है । इस अपवाद मे भी तपस्वी या भूख न सहन करनेवाले साधु भिक्षा के * लिए हर एक अगली वस्तु के अभाव में ऊनके, बालों के, घास के या सूत के कपड़े से एवं तालपत्र या पलास.. । के छत्र द्वारा वेष्टित होकर भी आहार लेने जावे । चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को गृहस्थ के घर भिक्षा लाभ की प्रतिज्ञा से पहले यहां मुझे मिलेगा ऐसी बुद्धि से गोचरी गये साधु के थम थम कर पानी पड़े तों आरामगुह के नीचे, (बगीचे आदि में) सांभोगिक-अपने या दूसरों के उपाश्रय नीचे, उसके अभाव में या विकटगृह -जहां पर ग्रामलोग बैठते हैं चौपाल के नीचे, या वृक्ष के मूल में या निर्जल कैर आदि के मूल नीचे जाना कल्पता है । उसमें 5 विकटगृह, वृक्षमूल आदि में रहे हुए साधु को उसके आने से पहले राधना शुरू किया भात वगैरह और बाद में रांधनी शुरू की हुई मसूर की, उड़द की या तेलवाली दाल हो तब उसे भात वगैरह लेना कल्पता है परन्तु मसूरादि की दाल लेना नहीं कल्पता । इसका यह भाव है कि-साधु के आने से पहले ही गृहस्थों ने अपने लिए जो राध ना शुरू किया हो वह उसे कल्पता है, क्यों कि इससे उसे दोष नहीं लगता, और साधु के आने पर जो रांधना - एक प्रारंभ किया हो तो वह पश्चादायुक्त होता है अतः उससे उद्गमादि दोष की संभावना होती है । इसी कारण वह का लेना नहीं कल्पता । इसी तरह शेष रही दोनों बातें जान लेना चाहिये । उसके घर पर साधु के आने से पहले प्रथम 0 ही मसूरादि की दाल पकानी शुरू कर दी हो और चावलादि बाद में पकाने रक्खे हों तो उस साधु को वह दाल ही *कल्पती है परन्तु चावल नहीं कल्पते । 領細翻物 149 For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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