________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Sin
LE
स्थविर आर्यदिन्न के कौशिक गोत्रीय और जातिस्मरण ज्ञानधारी स्थविर आर्यसिंहगिरि शिष्य थे । कौशिक गोत्रीय और जाति स्मरण ज्ञानधारी स्थविर आर्यसिंहगिरि के गौतम गोत्रीय स्थविर आर्यवज शिष्य थे । गौतम गोत्रीय आर्यवज के उत्कौशिक गोत्रीय स्थवीर आर्यवजसेन शिष्य थे । उत्कौशिक गोत्रीय स्थविर आर्यवजसेन के चार
स्थविर शिष्य थे । स्थविर आर्यनागिल, स्थविर आर्यपौमिल, स्थविर आर्यजयन्त और स्थविर आर्य तापस । स्थविर *नागिल से आर्यनागिला शाखा निकली, स्थविर आर्यपौमिल से आर्यपौमिला शाखा निकली, स्थविर आदजयन्त से
आर्यजयन्ती शाखा निकली और स्थविर आर्यतापस से आर्यतापसी शाखा निकली । प्रन अब विस्तृत वाचनाद्वारा स्थविरावली कहते हैं :P इस विस्तृत वाचना में आर्य यशोभद्र से स्थविरावली इस प्रकार जाननी । इसमे बहुत से भेद तो लेखकदोष
के हेतुभूत समझना चाहिये । शेष स्थविरों की शाखायें और कुल प्रायः आज एक भी मालूम नहीं होते । उनको
जानने वालों का मत है कि वे दूसरे नामों से तिरोहित (हो गये) होंगे । कुल एक आचार्य का परिवार समझना चाहिये 4। और गण एक वाचना (क्लास) लेनेवाला मुनिसमुदाय जानना चाहिये । कहा है कि "एक आचार्य की संतति को
कुल जानना चाहिये और दो या उससे अधिक आचार्यों के मुनि एक दूसरे से सापेक्ष वर्तते हों तो उनका एक गण समझना चाहिये । शाखा एक आचार्य की संतति मे ही उत्तम पुरूषों के जुदे जुदे वंश या विवक्षित आद्यपुरूष की - संतति जानना चाहिये । जैसे कि वजस्वामि के नाम से हमारी वजी शाखा है ।
LE
R
For Private and Personal Use Only