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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
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आठवा
व्याख्यान
अनुवाद
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कोशा नामा वेश्या के घर रहे थे । वररूचि ब्राह्मण के प्रयोग से उनके पिता की मृत्यु हुए बाद नन्द राजाने बुलाकर मंत्रीपद देने के लिए कहा तब अपने चित्त में उसी मंत्रीपद से पिता की मृत्यु विचार कर उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली । गुरुमहाराज की आज्ञा लेकर प्रथम चातुर्मास कोशा के घर पर रहे । अत्यंत हावभाव करनेवाली वेश्या
को भी प्रतिबोध कर गुरु म. के पास चातुर्मास के बाद जब आये तब गुरूजी ने भी उठकर संघ के समक्ष A "दुष्करकारक दुष्करकारक'' कह कर उन्हें सन्मानित किया । इस वचन को सुनकर सिंहगुफा के पास, सर्प की
बंबी के पास और कुवे के काठे पर चातुर्मास करनेवाले तीनों मुनियों को बड़ा दुःख हुआ । उनमें से दूसरे चातुर्मास 3 में सिंह गुफावासी साधु स्थूलभद्रजी की ईर्ष्या से गुरुमहाराज के निषेध करने पर भी कोशा के घर चोमासा करने
गये तो दिव्य रूप धारण करनेवाली कोशा को देख वह मुनि तुरंत ही चलचित्त हो गया । उस वेश्या ने नेपाल र देश से मुनिद्वारा रत्नकंबल मंगवा कर उसे गटर में फेंक कर उस मुनि को प्रतिबोध किया । फिर वह गुरुमहाराज 4 के पास आकर कहने लगा कि-''सचमुच तमाम साधुओं में स्थूलभद्र तो स्थूलभद्र एक ही है, उसको गुरुजी ने 5
त दुष्कर दुष्करकारक कहा है सो युक्त ही है," पुष्प, फल, शराब, मांस और महिलाओं के रस को जानते हुए भी प्रजो उनसे विरक्त रहते हैं ऐसे दुष्करकारक मुनियों को मैं नमस्कार करता हूं।
एक समय का जिक्र है कि राजा अपने रथवान पर तुष्टमान हुआ और उससे कुछ मांगने को कहा । उसने कोशा वेश्या की मांगणी की, राजा ने उसे स्वीकार किया । रथवान वेश्या के घर गया और वेश्या को
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