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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद
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आठवां व्याख्यान ।
अब गणधरादि की स्थविरावलीरूप आठवां व्याख्यान कहते हैं ।
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उस काल और उस समय में श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु के नव गण और ग्यारह गणधर हुए । शिष्य पूछता है कि हे भगवान! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं कि श्रमण भगवन्त श्री महावीर प्रभु के नवगण और ग्यारह गणधर हुए ? क्यों कि अन्य सब तीर्थकरों के जितने गण उतने ही गणधर हुए हैं। शिष्य के प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य महाराज कहते हैं कि श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर के गौतम गोत्रवाले बड़े इंद्रभूति नामक अणगार पांचसौ मुनियों को वाचना देते थे। (मतलब इतने उनके मुख्य शिष्य थे सब जगह ऐसा ही समझना चाहिये) भारद्वाज गोत्रवाले आर्य व्यक्त नामा स्थवीर पांचसौ मुनियों को वाचना देते थे । अग्नि वैश्यायन गोत्र वाले स्थविर आर्य सुधर्मा पांचसौ मुनियों को वाचना देते थे । वासिष्ठ गोत्रवाले आर्य मंडितपुत्र साढ़े तीनसौ, मुनियों को पाठ । काश्यप गोत्रवाले आर्य मौर्यपुत्र साढ़े तीनसी मुनियों को वाचना देते थे । गौतम) गोत्र वाले स्थविर अकंपित और हारितायन गोत्रवाले स्थविर अचलभ्राता ये दोनों तीनसौ तीनसौ मुनियों को वाचना पढाते थे । कौडिन्य गौत्र वाले स्थवीर मैनार्य और स्थवीर प्रयास ये दोनों तीन सौ तीन सौ मुनियों वाचना देने थे इसी हेतु से है आर्य ! ऐसा कहा जाता है कि श्रमण भगवन्त श्री महावीर प्रभु के नव गण
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आठवां
व्याख्यान
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