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अर्हन् कौशलिक ऋषभदेव प्रभु काश्यप गोत्री के पांच नाम इस प्रकार कहलाते हैं । ऋषभ, प्रथम राजा, LA प्रथम भिक्षाचर, प्रथम जिन और प्रथम तीर्थंकर (प्रथम राजा इस प्रकार हुए)
कालप्रभाव के कारण अनुक्रम से अधिकाधिक कषायों का उदय होन से परस्पर विवाद करते हुए युग युगलियों के लिए उसवक्त इस तरह की दंडनीति कायम की हुई थी । विमलवाहन और चक्षुष्मत् कुलकर के समय अल्प अपराध के लिए हक्काररूप ही दंडनीति थी । तथा यशस्वी और अभिचंद्र के समय में अल्प अपराध के लिए हक्काररूप और बड़े अपराध के लिए मक्काररूप दंडनीति थी. फिर प्रसेनजित, मरूदेवा और नाभिकुलकर के समय में जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट अपराध के लिए अनुक्रम से हक्कार, मक्कार, धिक्काररूप दंडनीति कायम हुई । इस प्रकार की नीति का भी उल्लंघन होने पर भगवान को ज्ञानादि गुणों से अधिक जान कर युगलियों द्वारा उस बात का निवेदन करने पर प्रभुने कहा-"नीति को उल्लंघन करनेवालों को राजा ही सब तरह का दंड कर सकता है और वह राजा राज्याभिषेक युक्त होता है, और मंत्री सामन्तों सहित होता है ।" प्रभु की यह बात सुनकर युगलिये बोले-"हमारा भी ऐसा ही राजा हो"प्रभुने कहा-“ऐसे राजा के लिए नाभिकुलकर के पास जाकर प्रार्थना करो" युगलियों ने नाभिकुलकर के पास जाकर प्रार्थना की। 1. हक्कार-हा ! तुमने अनुचित किया । 2. मक्कार- आयंदा ऐसा मत करना. 3. धिक्कार-धिक्कार है तुमको जो ऐसा अनुचित काम किया ।
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