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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie सातवां श्री कल्पसूत्र हिन्दी व्याख्यान अनुवाद |111011 अपने हृदय को कहने लगी-अरे धृष्ट, निष्ठुर, निर्लज्ज हृदये ! जब तेरा स्वामी दूसरी जगह रागवान् हुआ ॐ पर है तब तू अभी तक भी इस जीवन को किसलिए धारण करता है ? फिर निःश्वास डालकर अपने स्वामी को उपालंभ देकर बोली-हे धूर्त ! यदि तू सर्व सिद्धों की भोगी हुई वेश्या में रक्त हुआ था तो फिर इस तरह विवाह के बहाने तूने मेरी क्यों विडम्बना की ? सहेलियों ने उस से रोष में आकर कहा-हे सखी ! लोक प्रसिद्धी वत्तड़ी, सहिये एक सुनिज । सरलो बिरलो शामलो, चुकीय विहि करिज्ज।। । अर्थात्-लोक प्रसिद्ध कहावत है कि श्याम रंग का आदमी सरल स्वभाववाला नहीं होता और कोई हो भी जाय तो यह माना जाता है कि विधाता की गलती से हो गया । हे प्रिय सखी ! ऐसे प्रेमरहित पर क्यों प्रीति रखती है ? तेरे लिए कोई प्रेमपूर्ण वर ढूंढ निकालेंगे । यह बात सुनकर राजीमती अपने दोनों कानों पर हाथ रखकर बोली-सखियों ! मुझे न सुनने के वचन क्यों सुनाती हो? यदि सूर्य पश्चिम में उदय होने लगे, मेरुपर्वत चलायमान हो जाय; तथापि मैं नेमिकुमार को छोड़कर दूसरे को पति नहीं बनाऊंगी । फिर नेमिनाथ प्रभु को लक्षकर कहती है-हे जगत के स्वामी ! व्रत की इच्छावाले आप घर आये हुए याचकों को इच्छा से अधिक दोगे, परन्तु इच्छा रखनेवाली मुझ को तो आपने मेरे हाथ पर अपना हाथ तक भी न दिया । अब विरक्त होकर बोलती है-हे प्रभो ! यद्यपि आपने अपना हाथ इस विवाहोत्सव में मेरे हाथ पर हाथ नहीं रक्खा तथापि दीक्षा महोत्सव में यह हाथ मेरे शिर पर होगा । For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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