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श्री कल्पसूत्र
सातवां
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
1110711
5बोली-हे नेमिकुमार ! सुनो, पहले भी हरिवंश कुल में भूषण समान श्रीमुनिसुव्रतस्वामी बीसवें तीर्थकर हुए उन्होंने
भी गृहस्थावास में रह कर पुत्रोत्पत्ति होने के बाद दीक्षा अंगीकार की थी और मोक्ष में गये थे । फिर पद्मावती ने कहा-हे कुमार ! इस संसार में निश्चय ही स्त्री बिना मनुष्य की कुच्छ शोभा नहीं है एवं स्त्री रहित मनुष्य का कोई विश्वास भी नहीं करता, क्योंकि स्त्रीरहित मनुष्य विट कहलाता है । इतने में गांधारी बोली-हे बुद्धिमान कुमार म ! सज्जन यात्रा अर्थात् घर पर श्रेष्ठ मनुष्य मेहमान आवें उनकी मेहमानगीरी करना, संघ निकालना, पर्व का *
उत्सव करना, घर पर विवाह कृत्य हो, बारफेर और पर्षदा ये सब अच्छे काम स्त्री के बिना नहीं शोभते । फिर जागौरी बोली-देखो ज्ञानरहित पक्षी भी सारा दिन जहां तहां भटक कर रात को अपने घौसले में जाकर अपनी स्त्री . के साथ निवास करते हैं इसलिए हे देवर ! क्या तुम्हारे में पक्षियों जितनी भी समझ नहीं है ? लक्ष्मणा.
बोली-स्नान आदि सर्व अंग की शोभा में विचक्षण, प्रीतिरस से सुन्दर, विश्वास का पात्र और दुःख में सहायॐकरनेवाला स्त्री के बिना और कौन होता है ? अंत में सुसीमा कहने लगी-स्त्री बिना घर पर आये हए महमानों हकी और मुनिराजों की सेवाभक्ति कौन करे और अकेला पुरूष शोभा भी कैसे प्राप्त कर सकता है ?
इस तरह गोपियों के वचनों और यादवों के आग्रह से मौन रहे हुए और जरा सा मुस्कराते प्रभु को देखकर 'अनिषिद्धं अनुमतं' अर्थात् जिस बात का निषेध नहीं किया जाता उसकी रजामंदी समझी जाती है, इस न्याय से उन गोपियों ने यह घोषणा कर दी कि कि नेमिकुमार ने विवाह कराना मंजूर कर लिया है ।
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