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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
प्रथम
व्याख्यान
अनुवाद
11811
पांचवे गुण से लेकर बाहरवे गुण पर्यन्त मध्यम क्षेत्र समझना चाहिये । प्रथम उत्कृष्ट क्षेत्र की गवेषणा करना । वैसा न मिलने पर मध्यम क्षेत्र खोजना और यदि वह भी न मिले तो जघन्य क्षेत्र में चातुर्मास करना; परन्तु वर्तमानकाल में तो गुरू महाराजने आज्ञा की हो उस क्षेत्र में मुनियों को चातुर्मास करना चाहिये ।
दश प्रकार के कल्प (आचार) पर वैद्य की कथा ऊपर बतलाया हुआ यह दश प्रकार का कल्प यदि दोष के अभाव में किया हो तो तीसरे वैद्य की औषधि के समान गुणकारी होता है । किसी एक राजा ने अपने पुत्र को भविष्य में रोग न हो ऐसी चिकित्सा करने के लिए तीन वैद्य बुलवाये । उनमें से प्रथम वैद्य बोला कि मेरी औषधि यदि रोग हो तो उसका नाश करती है और रोग न हो तो दोष प्रकट करती है । राजा बोला-सोते हुए सर्प के जगाने के समान ऐसी औषधि से मुझे प्रयोजन नहीं । दूसरा वैद्य बोला कि मेरी औषधि यदि रोग हो तो उसे नष्ट करती है और रोग न हो तो न गुण न दोष करती है-राजा ने कहा यह भी राख में घी डालने के समान है, ऐसी औषधि की कोई जरूरत नहीं । तीसरे वैद्य ने कहा कि मेरी औषधि यदि शरीर में रोग होतो उसे नष्ट करती है और रोग न हो तो बल, वीर्य सौन्दर्य आदि की पुष्टि करती है। राजा ने कहा कि यह औषधि सर्वश्रेष्ठ है । वैसे ही यह कल्प भी दोष हो तो उसका नाश करता है, दोष न हो तो धर्म का पोषण करता है । इसलिए प्राप्त हुए पर्युषणा पर्व में मंगल के निमित्त पांच दिन में नव वाचनाओं द्वारा कल्पसूत्र का वाचना श्रेयस्कर है ।
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