________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
%
朝%
पर स्थापित कर प्रभु ने गण की अनुज्ञा दी । इस तरह गणधरवाद समाप्त हुआ । । अब उस काल और उस समय श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु ने प्रथम चातुर्मास अस्थिक ग्राम की निश्राय में किया । फिर तीन चातुर्मास चंपा और पृष्ठचंपा की निश्राय में किये । इसी तरह बारह चौमासे वैशाली नगरी और
वाणिज्य ग्राम की निश्राय में किये । चौदह चातुर्मास राजगृह नगर और नालंदा नामक पुरशाखा की निश्राय में 3 किये । छह मिथिला में किये । दो भद्रिका नगरी में किये । एक आलंभिका नगरी में किया । एक श्रावस्ती नगरी
में किया । एक वजभूमि नामक अनार्य देश में किया । एक अन्तिम चातुर्मास प्रभु ने अपापा नगरी में हस्तीपाल राजा LA के कारकूनों की पुरानी शाला में किया । प्रथम उस नगरी को अपापा कहते थे परन्तु वहां पर प्रभु का निर्वाण होने से देवों ने उसका नाम "पापानगरी' रक्खा । जिसको आज पावापुरी तीर्थक्षेत्र कहते हैं ।
(भगवान का निर्वाण कल्याणक) अब अन्तिम चौमासा करने प्रभु मध्यम का पापानगरी में हस्तीपाल राजा के कारकूनों की शाला में पधारें । उस चातुर्मास में वर्षाकाल का चौथा महीना, सातवां पक्ष, कार्तिक मास का कृष्णपक्ष, उस कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अन्तिम रात्रि थी उस रात्रि को श्रमण भगवान् श्रीमहावीर प्रभु कालधर्म पाये । कायस्थिति और भवस्थिति पूर्ण कर निर्वाण को प्राप्त हुए | संसार से पार उतर गये । भली प्रकार संसार में फिर
%
%簿翰
For Private and Personal Use Only