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श्री कल्पसूत्र
YA
छट्टा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
11841।
परलोक में प्रतिबन्ध रहित, एवं जीवित और मरण में इच्छा रहित थे । तथा संसाररूप समुद्र के पार को पाये 5 कर्मरूप शत्रुओं का नाश करने के लिए उद्यमवान् होकर प्रभु विचर रहे थे । ।
इस प्रकार विचरते हुए अनुपम ज्ञान से, अनुपम दर्शन से, अनुपम चारित्र से, आलय-स्त्री, नपुंसकादि के संसर्ग से रहित स्थान में रहने से, अनुपम विहार से, अनुपम पराक्रम से, अनुपम सरलता से, अनुपम * निरभिमानता से, अनुपम लाघवता से, अनुपम क्षमाशीलता से, अनुपम निर्लोभता से, अनुपम मनोगुप्ति आदि से, त अनुपम संतोष से एवं सत्य संयम तथा बारह प्रकार के तपाचरण से और अनुपम मोक्षमार्ग से, अर्थात् पूर्वोक्त गुणों के समूह से आत्मा का ध्यान करते हुए प्रभु महावीर को बारह वर्ष बीत गये । इतने समय में प्रभु ने जो तप किया वह इस प्रकार था । छ: मासी तप छ: मासी तप | चार मासी तप | तीन मासी तप ढाई मासी दो मासी डेढ़ मासी 11 पांच दिन न्यून
9 मासक्षपण
पक्षक्षपण । भद्र प्रतिमा । महाभद्र प्रतिमा । सर्वतोभद्र प्रतिमा | छद्र
अट्टम 12
दिन दो 2 दिन 4
दिन 10 | 229 पारणा
दीक्षा सर्वाग्रं वर्ष 12 दिन 349
दिन 1 । मास 6 दिन 151 उपरोक्त सर्व तप प्रभु ने पानी रहित किया था और उस साढ़े बारह वर्ष के दरम्यान एक उपवास का
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擔擔都變
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