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को शीघ्र ही स्वर्ग से बाहर निकाल दो । इस प्रकार इंद्र की आज्ञा होने से सुभट देवों ने निर्दयतापूर्वक मुष्टी यष्टी से ताड़ना-तर्जना कर तथा दूसरे देवों द्वारा अंगुली मोड़ने आदि के आक्रोश को सहन करता हुआ, चोर के समान
शंकित होकर इधर-उधर देखता हुआ, बुझे हुए अंगार के समान निस्तेज होकर परिवार रहित एकला हड़काये हुए - कुत्ते के समान देवलोक में से निकाल दिया हुआ संगम देव मेरुपर्वत के शिखर पर अपना शेष एक सागरोपम * का आयु पूर्ण करेगा । उसकी अनमहिर्षियां भी इंद्र की आज्ञा से दीनमुख होकर अपने स्वामी के पीछे चली गई
। फिर आलंबिका नगरी में हरिकान्त तथा श्वेताम्बिका में हरिसह नामक दो विद्युतकुमार के इंद्र प्रभु को कुशल न पूछने आये । श्रावस्ती नगरी में इंद्रने स्कंदक की प्रतिमा में प्रवेश कर प्रभु को नमस्कार किया, इससे प्रभु की ए बड़ी महिमा हुई । वहां से कोशाम्बी नगरी में प्रभु को वन्दन करने के लिए सूर्य चंद्रमा आये । वाणारसी मे इंद्र, राजगृही में ईशानेंद्र तथा मिथिला नगरी में जनक राजा ने और धरणेद्र ने प्रभु को कुशल पूछा ।।
ग्यारवां चौमासा प्रभु का वैशाली नगरी में हुआ । वहां भूतेंद्र ने प्रभु को कुशल पूछा । वहां से प्रभु 卐 सुसुमार नामक नगर की ओर गये । वहां चमरेंद्र का उत्पात हुआ । वहां से क्रम से प्रभु कौशाम्बी नगरी
में गये । वहां पर शतानिक नामक राजा था, उसकी मृगावती नामा रानी थी, विजया नामा प्रतिहारी
थी, वादी नामक धर्मपालक था, गुप्त नामा अमात्य था, उसकी नन्दा नाम की स्त्री थी, वह श्राविका * थी और मृगावती की सखी थी । वहां प्रभु ने पोष शुदि प्रतिपदा के दिन अभिग्रह धारण किया ।
明朝鄉勇鎮
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