________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kabatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
छट्ठा
व्याख्यान
अनुवाद
1178।।
ध्यानस्थ हो बलदेव के चैत्य में रहे । वहां भी गोशाला बलदेव के मुख में मेहन रख खडा रहा इस से वहां भी उसे खूब मार पडी । दोनों जगहों में उसे लोगों ने मुनि जान कर छोड दिया । क्रम से प्रभु उन्नाग सन्निवेश में गये । मार्ग में सम्मुख आते हुए एक दंतुर पति पत्नी युग्म को देख गोशाला ने उनकी हंसी की कि देखो विधाता कैसा चतुर है-दूर देश में वसनेवाली को भी उसके योग्य ही ढूंढ कर जोडी मिला देता है । इस से खिज कर
उन दोनों ने उसे पकड कर खूब पीटा और अन्त मे हाथ पैर बांध उसे बांसों की जाल में डाल दिया। बाद में 40 उसे प्रभु का छत्र धरनेवाला समझ कर बन्धन मुक्त कर दिया । वहां से प्रभु गोभूमि तरफ गये ।
प्रभु ने आठवां चातुर्मास राजगृह में किया । तथा चौमासी तप किया । बाहर पारणा कर फिर अनार्य देश र में पधारे ।
नववां चातुर्मास वहां किया और चौमासी तप भी किया । प्रभु को वहां बहोत उपसर्ग हुए । फिर दो मास तक फिर प्रभु वहां ही विचरे । वहां से कूर्मग्राम तरफ जाते हुए मार्ग में एक तिल के पौदों को देखकर गोशाला ने प्रभु से पूछा कि यह पौदों सफल होगा या नहीं ? प्रभु ने कहा कि इसमें रहे हए पुष्पों के सातों ही जीव मरकर 40 इसी की एक फली में तिल के रूप में पैदा होंगे । यह सुनकर प्रभु का वचन मिथ्या करने के लिए उसने उस तिल के पौदे को उखेड कर एक तरफ रख दिया । उस वक्त नजीक में रहे हुए व्यन्तर देवों ने विचारा कि प्रभु * का वचन मिथ्या न होना चाहिये, अतः उन्होंने वहां पर वृष्टि की इससे उस भीगी हुई जमीन में उस पर
For Private and Personal Use Only