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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद 1177 11 00500405010500100 www.kobatirth.org उपसर्ग किया और मेघ ने उन्हें यह जान कर प्रभु से क्षमा मांगी। फिर प्रभु कलिष्ट कर्मों की निर्जरा के लिए लाट देश की ओर पधारे। वहां हिलनादि बहुत से उपसर्ग मनुष्यों की तरफ से हुए । फिर पूर्णकलश नामा अनार्य ग्राम में जाते हुए मार्ग में प्रभु को दो चोर मिले। वे प्रभु को देख अपशुकन की बुद्धि से तरवार से मारने को दौड़े । उसी वक्त इंद्र ने उपयोग से यह देख उसका निवारण किया । पांचवा चौमासा - भगवान ने भद्रिका नगरी में किया। और वहां पर चार मासक्षपण का तप किया। चौमासा व्यतीत होने पर क्रम से तम्बाल ग्राम में पधारे। वहां से पार्श्वनाथ प्रभु के संतानीय नन्दिषेण नामक आचार्य बहुत से परिवार सहित काउस्सग ध्यान से रहे हुए थे । रात्रि के समय कोतवाल के पुत्र ने उन्हें चोर झ 1 से मार दिया । वे अवधिज्ञान प्राप्त कर देवलोक में गये वहां पर भी गोशाला का वृत्तांन्त पूर्वोक्त मुनिचंद्र के समान ही समझ लेना चाहिये। वहां से प्रभु कूपिक सन्निवेश पधारे। वहां जासूस की शंका से कोतवालों ने उन्हें पकड लिया । परन्तु पार्श्वनाथ प्रभु की शिष्या जो बाद में परिव्राजिका हो गयी थी विजया और प्रगल्भाने प्रभु को पहचान लेने से छुड़ाया । वहां से गोशाला प्रभु से जुदा होकर दूसरे मार्ग से कहीं जा रहा था । रास्ते में उसे पांच सौ चोरों ने मामा मामा कह कर पकड़ लिया और बारी बारी से उसके कंधे पर चढने लगे । गोशाला थक जाने से कर उसने विचारा कि इस से प्रभु के ही साथ रहना ठीक था । अब वह फिर प्रभु को ढूंढने लगा । प्रभु भी वैशाली नगरी में जाकर एक शून्य पडी लुहार की शाला में ध्यानस्थ हो खड़े थे । लुहार छह महिने बीमार For Private and Personal Use Only 40 500 400 40 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छुट्टा व्याख्यान HONIGH
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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